1500 ई.पूर्व से 1000 ई.पूर्व के समय काल को ऋग्वैदिक काल माना गया है |ऋग्वैदिक काल की जानकारी ऋग्वेद से मिलती है |
ऋग्वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी |ऋग्वैदिक काल पित्रसत्तात्मक था लेकिन इस काल में स्त्रियों की स्थिति भी अच्छी थी उन्हें पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त थी , इस काल में अपाला , लोपामुद्रा , विश्व्पारा जैसी आदि महिलायें विदुषी थी , महिलाओं को अपने पतियों के साथ यज्ञ में बैठने के अधिकार प्राप्त थे तथा राजा को सलाह देने के लिए बने गयी संस्था – सभा एवं में भी स्त्रियाँ भाग ले सकती थी
ऋग्वैदिक काल की सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई कुल या परिवार थी जिसका मुखिया कुलपति कहलाता था |वर्ण व्यवस्था जन्म या जाती के आधार पर न होकर कर्म के आधार पर होती थी |
ऋग्वैदिक काल के प्रिय देवता इंद्र थे तथा पवित्र नदी सरस्वती नदी थी |
सामाजिक स्थिति –
ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था लेकिन स्त्रियों को भी महत्त्व दिया जाता था माता को गृहस्वामिनी माना जाता था तथा उनका आदर किया जाता था
इस काल में स्त्रियों को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त थी स्त्रियों को विवाह सबंधी स्वतंत्रता प्राप्त थी तथा अंतरजातीय विवाह प्रचलन में था |
आजीवन विवाह न करने वाली महिलाओं को “अमाजू ” कहा जाता था| बाल विवाह तथा सती प्रथा के प्रचलन के कोई प्रमाण नही मिलते है | स्त्रियों को शिक्षा सम्बन्धित अधिकार प्राप्त थे|
अपाला ,विश्वपारा ,विश्व्पला ,घोषा , लोपामुद्रा आदि विदुषी महिलायें थी |स्त्रियों को राजनीती में भाग लेने का अधिकार भी था तथा अपने पतियों के साथ यज्ञ में भी भाग ले सकती थी लेकिन किसी भी प्रकार की संपत्ति पर स्त्रियों का कोई अधिकार नही था|
आर्यों का प्रारम्भिक वर्गीकरण वर्ण तथा कर्म के आधार पर था
ब्राह्मण वर्ग ,क्षत्रीय वर्ग ,वैश्य वर्ग |
यह वर्गीकरण जाति या जन्म के आधार पर न होकर कर्म या व्यवसाय के आधार पर निश्चित किया जाता था |अनार्यों को आर्यों में मिलाकर एक नए वर्ण का उदय हुआ जो शूद्र वर्ण कहलाता था ,अनार्यों को शूद्र वर्ण में रखा गया था |
ऋग्वैदिक काल में दास तथा दस्युओं का उल्लेख भी मिलता है , जो “अमानुष कहलाते” थे तथा इन दास तथा दस्युओं से आर्यों का विवाह निषिद्ध था तथा इनसे आर्यों का संघर्ष भी मिलता है ,जिसमे आर्य विजयी हुए |
ऋग्वेद के 10 वे मंडल के पुरूषसूक्त में 4 वर्णों का उल्लेख मिलता है जिसमे कहा गया है की ब्राह्मण ब्रह्म के मस्तिष्क से ,क्षत्रीय ब्रह्मा की भुजाओं से , वैश्य ब्रह्मा की जाघों से तथा शूद्र ब्रह्मा के पैरों से जन्मे है |
आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था ये लोग मांसाहारी तथा शाकाहारी दोनों तरह का भोजन करते थे | मनोरंजन के साधनों के रूप में संगीत-गायन ,नृत्य ,शिकार ,चौपड ,घुड़दौड़ आदि का प्रयोग करते थे |
आर्य सूती ,ऊनी,रंगीन वस्त्रो का प्रयोग करते थे ,यहाँ के स्त्री और पुरूष दोनों को आभूषण पहनने का शौक था जो सोने ,चांदी ,हाथीदांत ,कीमती पत्थरों के बने होते थे |
ऋग्वैदिक काल की राजनितिक स्थित
आर्यों को पंचजन कहा जाता था क्योंकि ऋग्वैदिक काल 5 कबीलों में विभाजित था कबीलों को जन भी कहा जाता था ये कबीले थे अनु ,पुरु ,द्र्हू ,तुर्वस ,यदु |
ऋग्वैदिक काल की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल थी ,कई परिवारों को मिला के एक ग्राम बनता था ,कई ग्रामों को मिलकर एक विष बनता था ,अनेक विशों को मिला कर एक जन बनता था तथा अनेक जन मिलकर एक राष्ट्र का निर्माण करते थे |
परिवार या कुल के मुखिया कुलप या कुलपति कहलाता था , ग्राम का मुखिया ग्रामिक या ग्रामीणी कहलाता था ,विश का प्रधान विश्पति कहलाता था ,जन का प्रमुख राजन ,राजा या गोप कहलाता था ,राष्ट्र का प्रमुख राष्ट्रीक कहलाता था ऋग्वेद में 170 बार विश तथा 275 बार जन शब्द का प्रयोग हुआ है तथा जनपद शब्द का उल्लेख एक बार भी नही है |
राष्ट्र की अवधारणा पूरी तरह से विकसित नही थी इसलिए आर्यों का शासन जन के प्रमुख राजन के हाथों में था शुरुआत में राजा का चुनाव यहाँ की जनता ही करती थी लेकिन बाद में राजा का पद अनुवांशिक हो गया था फिर भी राजा अपनी प्रजा का पूर्णतः ध्यान रखता था |
ऋग्वैदिक काल में राजा सम्पत्ति का स्वामी नही होता था न ही वह किसी भी प्रकार का शासन जनता पर चलाता था| वह प्रधानतः युद्ध में जनता का नेत्रत्व करता था|
इसके बदले यह की जनता राजा को भेंट देती थी जो एक स्वेच्छिक क्रिया थी इसे बलि कर भी कहा जाता था राजा इसी बलि कर से अपना जीवन यापन करता था उत्तर वैदिक काल में इसी बलि कर को अनिवार्य कर में बदल दिया गया |इस काल में युद्ध के लिए गविष्टि शब्द का प्रयोग हुआ है |
ऋग्वेद के 7वे मंडल में दसराज युद्ध का वर्णन मिलता है जो रावी नदी के तट पर राजा सुदास तथा दस कबीलों के बीच हुआ था जो इस प्रकार हैं अनु ,पुरु ,यदु ,द्र्हू तुर्वस ,अकिन ,पक्थ ,भलानस ,विष्निन तथा शिव , इनमे से शुरुआती पांच आर्य कबीले थे तथा अंतिम पांच अनार्य कबीले थे | इस युद्ध में राजा सुदास विजयी हुआ था, राजा सुदास भरत कबीले के राजा थे , इसी कबीले के राजा भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा|राजा सुदास के पुरोहित वशिष्ठ थे तथा दस जनों के पुरोहित विश्वामित्र थे |
ऋग्वैदिक काल में राजा के अलावा सूत ,रथकार ,कम्मादि नामक अधिकारियों का उल्लेख भी मिलता है जिन्हें रत्नि कहा जाता था जिनकी संख्या राजा को मिलकर 12 होती थी |ऋग्वैदिक काल में दुर्गपति को पुरप कहा जाता था ,जनता की गतिविधिओं को देखने वाले गुप्तचर को स्पश कहा जाता था तथा गोचर भूमि या चारागाहों का अधिकारी वाजपति कहलाता था तथा अपराधिओं को पकड़ने का कम करने वालों को उग्र कहा जाता था
ऋग्वेदिक काल में कुछ संस्थाएं भी अस्तित्व में थी जैसे – सभा ,समिति ,विदथ तथा गण |सभा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ माना गया हैं|सभा श्रेष्ठ (वृद्ध ) तथा सभ्रांत (कुलीन) लोगो की संस्था थी सभा में भाग लेने वाले लोगों को सभेय कहा जाता था तथा इसके अध्यक्ष को सभापति कहा जाता था|इसका प्रमुख कार्य न्याय प्रदान करना था ऋग्वेद में किसीभी तरह के न्यायाधिकारी का उल्लेख नही मिलता है|समिति आम जन का प्रतिनिधित्व करती थी इसका मुख्य कार्य राजा की नियुक्ति ,पद्च्युक्ति तथा नियंत्रण करना था ,इसके अध्यक्ष को ईशान कहा जाता था |विदथ आर्यों की सबसे प्राचीन संस्था थी इसे जनसभा भी कहा जाता था |
ऋग्वेद में सभा का 8 बार उल्लेख मिलता है समिति का 9 बार तथा विदथ का 22 बार उल्लेख मिलता है|
स्त्रियाँ भी सभा एवं समिति में भाग ले सकती थी |
ऋग्वैदिक काल की व्यापारिक या आर्थिक स्थिति
ऋग्वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी | ऋग्वैदिक काल का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था इसके अलावा कृषि तथा व्यापार भी आर्थिक जीवन का आधार थे |पशुओं में घोडा आर्यों का प्रिय पशु थातथा गाय को पवित्र पशु माना गया था तथा उसे अघन्या या गविष्टि कहा गया था , गाय को मारने वालों को मृत्यु दंड अथवा देश से निकला दिया जाता था |घोड़े ओर गाय के अलावा बकरी ,भेड ,कुत्ता , गधे आदि पशुओं का उल्लेख मिलता है |
पशुपालन के बाद कृषि आर्थिक व्यवस्था का मुख्य आधार थी जुती हुई खेती को उर्वर या क्षेत्र कहते थे ,खेत बैल तथा हल की सहायता से जोते जाते थे तथा सिचाई के लिए 2 तरह की पद्धति अपनाइ जाति थी 1. खनित्रिमा (खोदकर प्राप्त किया गया जल), 2. स्वयंजा (प्राकृतिक जल) | अपनी फसल को कीटनाशकों से बचाने के लिए खाद्य का प्रयोग भी करते थे |ऋग्वेद का चौथा मंडल कृषि को समर्पित है , ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख 33 बार मिलता है |
ऋग्वैदिक काल में उधोग धंधे तथा व्यापार भी आर्थिक जीवन का आधार था |वस्त्र बनाना तथा ,सूत कातना आर्यों का प्रमुझ उद्योग था| बढई (तक्षण) तथा लुहार (कर्मकार) को भी ऋग्वैदिककालीन अर्थव्यवस्था में विशेष महत्व दिया गया था | इसके अलावा चर्मकार ,कुम्भार ,सुनार का भी उल्लेख मिलता है सुनार के लिए हिरन्यकार तथा सोने के लिए हिरन्य शब्द का प्रयोग किया गया था |
सर्वप्रथम लोहे को आर्यों ने ही खोजा था तथा इसे श्याम अयस्क नाम दिया तथा तांबे को लोहित अयस्क नाम दिया गया था |लेन -देन में वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रयोग किया जाता था |व्यापार के लिए दूर दूर तक जाने वाले व्यक्ति को पणी कहा जाता था |ऋग्वेदिक सभ्यता ऋण तथा ब्याज का उल्लेख भी मिलता है , ऋण देकर ब्याज लेने वाले व्यक्ति को वेकनाट या सूदखोर बोला जाता था |
ऋग्वैदिक काल की धार्मिक स्थिति –
इस काल के सर्वाधिक प्रिय देवता इंद्र थे , इंद्र को युद्ध का देवता तथा वर्षा का देवता माना जाता था इंद्र के लिए पुरंदर तथा ब्रित्रहन शब्द का प्रयोग भी किया है | इस काल के सबसे प्राचीन देवता घौ या घौष थे जो आकाश के देवता कहलाते थे |इनके अलावा निम्न देवता प्रमुख थे …..
- वरुण – पृथ्वी ओर सूर्य का निर्माता ,जल का देवता
- अग्नि – देवता तथा मनुष्य के बीच का मध्यस्थ
- विष्णु – विश्व का संरक्षक
- सोम – वनस्पति का देवता
- अश्विनी – विपत्तियों को हरने वाला देवता , देवताओं का वैध
- पूषण – पशुओं का देवता
- मारूत – वायु का देवता
- सविता / सावित्री – अमरत्व की देवी , इन्ही को गायत्री मन्त्र समर्पित है जिसकी जानकारी ऋग्वेद के तीसरे मंडल से मिलती है |
ऋग्वेद में 250 बार इंद्र तथा 200 बार अग्नि शब्द का प्रयोग हुआ है |
ऋग्वैदिक काल की नदियाँ –
ऋग्वैदिक काल की सबसे महत्वपूर्ण तथा पवित्र नदी सरस्वती नदी माना गया है |ऋग्वेद में गंगा शब्द का 1 बार तथा यमुना शब्द का 3 बार प्रयोग मिलता है ,सबसे ज्यदा बार उल्लेख सिंधू नदी का मिलता है |इनके अलावा ऋग्वैदिक काल की प्रमुख नदियाँ निम्न है|
- वितिस्ता (झेलम)
- पुरुशनी (रावी)
- आस्किन (चेनाब)
- विपाशा (व्यास)
- शतुदरी (सतलज)
- गोमती (गोमल)
- कुभा (काबुल)
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