सिंधू घाटी सभ्यता क्या है ? इससे सम्बंधित प्रमुख स्थल एवं उनसे प्राप्त अवशेष | सिंधू घाटी सभ्यता की आर्थिक ,सामाजिक , धार्मिक स्थिति | सिंधू घाटी सभ्यता की लिपि , इसका पतन | सारी डिटेल इस पेज पर है
सिंधू घाटी सभ्यता मध्य एशिया की नगरीय संस्कृति थी यह एक भूमध्य सागरीय प्रजाति थी , इस सभ्यता के निवासी द्रविड़ कहलाते थे सिंधू घाटी सभ्यता का समय काल विभिन्न स्त्रोतों में अलग अलग ज्ञात है जैसे कार्बन डेटिंग विधि द्वारा सिन्धी घाटी सभ्यता का समय काल 2500 ई .पूर्व से 1750 ई. पूर्व है , खगोलशास्त्री जॉन मार्शल के अनुसार सिंधू घाटी सभ्यता का समय काल 3250 ई .पूर्व से 2750 ई .पूर्व है तथा NCERT के अनुसार सिंधू घाटी सभ्यता का समय काल 2600 ई .पूर्व से 1900 ई .पूर्व है
सिंधू घाटी सभ्यता की खोज जॉन मार्शल ने 1921 ईसवी में की तथा इसकी खुदाई दयाराम साहनी ने की इस सभ्यता के लोग कांस्य धातु से परिचित थे इसलिए इसे कांस्ययुगीन सभ्यता भी कहा जाता है|
विभिन्न खगोलशस्त्रीयों द्वारा इस सभ्यता को अलग अलग नाम दिए गये हैं जैसे इसके सर्वाधिक अवशेष सिंधू नदी के किनारे मिले होने के कारण जॉन मार्शल ने इसे सिंधू घाटी सभ्यता नाम दिया है ,इस सभ्यता में सबसे पहले हड्ड्प्पा नमक नागर की खोज हुयी इस कारण मार्टिमर व्हीलर ने इसे हड्ड्प्पा सभ्यता नाम दिया है , अर्नेस्ट मैके ने इसे हड्ड्प्पा संस्कृति नाम दिया है तथा मेसोपोटामिया के अभिलेखों में सिंधू घाटी के लिए मेलूहा शब्द का प्रयोग हुआ है
पिग्गट ने हडपा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुडवा राजधानी कहा है |
सिंधू घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल तथा उनसे मिले अवशेष
सिंधू घाटी सभ्यता एक विस्तृत सभ्यता थी इसका विस्तार पंजाब ,सिंध , बलूचिस्तान , गुजरात ,राजस्थान ,पश्चिमी उत्तरप्रदेश तक है |इसका पश्चिमी भाग सुतकांगेडोर (बलूचिस्तान , पाकिस्तान , दशक नदी के किनारे ) तक , पूर्वी भाग अलमगीरपुर (मेरठ ,उत्तरप्रदेश , हिंडन नदी के किनारे ) तक ,उत्तरी भाग माँदा ( जम्मू कश्मीर , चिनाब नदी के किनारे ) तक , दक्षणि भाग दैमाबाद (अहमदनगर , महाराष्ट्र ,गोदावरी नदी के किनारे) तक फैला था |इस सभ्यता के विभिन्न नगरों में से 6 को ही प्रमुख नागर मन गया है ,हडप्पा ,मोहनजोदड़ो ,धोलावीरा ,गणवारीवाला , रखीगढ़ी कालीबंगा | भारत में हडप्पा सबसे ज्यादा स्थल गुजरात से खोजे गये है |
अफगानिस्तान –
शोर्तुगोई , मुंडीगाक
शोर्तुगोई – एकमात्र स्थान जहाँ से नहरों के प्रमाण प्राप्त हुए है
पकिस्तान –
हडप्पा , मोहनजोदड़ो ,सुतकांगेडोर ,चन्हुदड़ो ,अल्हदीनों , कोटदीजी , बालाथल
हडप्पा -दयाराम साहनी द्वारा 1921 में खोज की गयी|यहाँ R-37 नामक कब्रिस्तान ,तांबे का पैमाना ,शंख से बना बैल , स्वास्तिक का चिह्नं तथा स्त्री के गर्व से निकलता पौधा आदि के प्रमाण मिले है |
मोहनजोदड़ो – राखलदास बनर्जी द्वारा 1922 में खोज की गयी |सिंधू भाषा में मोहनजोदड़ो का अर्थ मृतकों का टीला होता है | मोहनजोदड़ो से स्नानागार तथा अन्नागार के साक्ष्य प्राप्त हुए है यहाँ के स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा ,7.01मीटर चौड़ा ,2.43मीटर गहरा होता था तथा यहाँ के अन्नागार संभवत: सिंधू घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी ईमारत है मोहनजोदड़ो से नर्तकी (देवदासी ) की कांस्य की मूर्ती प्राप्त हुई है , यहाँ से शिव के प्रारम्भिक रूप की मुहर भी मिली है जिसे समन या तांत्रिक मुहर भी कहा जाता है , जैन धर्म के लोग इसे आदिनाथ की मूर्ती मानते हैं | मोहनजोदड़ो से सूती वस्त्र का प्रमाण भी मिला है तथा आर्यों के आक्रमण का प्रमाण भी यही से मिले है |
चन्हुदड़ो – यह सिंधू घाटी सभ्यता का प्रमुख औद्योगिक स्थल है इसकी खोज अर्नेस्ट मइके द्वारा हुई|यहाँ से सबसे ज्यादा सौन्दर्य प्रसाधनों के प्रमाण तथा मनके बनाने के कारखाने के प्रमाण मिले है |
अल्हादीनो – यह सिंधू सभ्यता का सबसे छोटा स्थान है
गुजरात –
लोथल , ,धोलावीरा ,सुरकोतदा ,रोजदी ,रंगपुर ,देसलपुर ,कुतांसी ,मालवाड
लोथल – लोथल से बंदरगाह ,सोने के मनकों का हार , मिटटी के घोड़े की मूर्ती ,चावल की खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए है
धोलावीरा – यह भारत में सिंधू सभ्यता का सबसे बड़ा तथा नवीनतम ज्ञात स्थल है तथा हडप्पा का एकमात्र त्रीस्तरीय नागर है ,यहाँ से श्वेत पालिशदार पत्थर के प्रमाण मिले है
सुरकोटदा – घोड़े की अस्थियों के प्रमाण प्राप्त हुए है |
रोजदी – हाथियों के कंकाल प्राप्त हुए है |
रंगपुर – गेंहू की खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए है
उत्तरप्रदेश –
अलामगीरपुर , बडगॉव ,अम्बखेडी
पंजाब –
रोपड़ ,बड़ा ,संघोल
रोपड़ – सिंधू सभ्यता का एकमात्र स्थान जहाँ से व्यक्ति के साथ कुत्ता दफनाये जाने के प्रमाण मिले है
हरियाणा –
राखीगढी ,बनमाली , मिथातल ,भिरडाणा
राखीगढ़ी – स्तंभयुक्त मंडप के प्रमाण मिले है
बनमाली – मिट्टी से बना खिलौना हल ,वॉसवेसिन के प्रमाण मिले है
बनमाली ,लोथल तथा कालीबंगा से यज्ञ वेदिकाओं के प्रमाण मिले है
मिथातल ,रोपड़ से तांबे की कुल्हाड़ी के प्रमाण मिले है
भिरडाणा यहाँ का खोजा गया सबसे प्राचीन स्थल है
राजस्थान –
कालीबंगा – काली मिट्टी से बनी चूड़ियाँ , जुते हुए खेत के साक्ष्य , नक्काशीदार इंटों के प्रयोग के साक्ष्य, लकड़ी से बनी नालियों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं |
सिंधू सभ्यता की आर्थिक स्थिति
सिंधू सभ्यता के लोग आर्थिक जीवन यापन के लिए कृषि करते थे यहाँ की प्रमुख फसल गेहूं तथा जौ थी |रंगपुर से गेहूं की खेती के प्रमाण तथा वनमाली से जौ की खेती के प्रमाण प्राप्त हुए है इसके अलावा यहाँ के लोग सरसों ,मटर ,तिल ,ज्वार आदि की खेती भी करते थे तथा चावल की खेती के प्रमाण के प्रमाण भी लोथल से प्राप्त हुए है |कृषि करने के लिए धातु तथा पत्थरों से बने औजारों का इस्तेमाल किया जाता था, इस सभ्यता के लोग लोहे से परिचित नही थे |
खेती के साथ साथ पशुपालन तथा व्यापार भी यहाँ की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार थे |पशुओं में कूवड वाला बैल यहाँ का प्रिय पशु था इसके अलावा गाय ,भैंस ,कुत्ता , बकरी ,भेड़ आदि को भी पालते थे |यहाँ के लोग हाथी तथा गैंडे से भी परिचित थे ,यहाँ के लोग घोड़े से परिचित नही थे पर सुरकोटडा से घोड़े के अस्थि पंजर के साक्ष्य मिले है |यहाँ के लोग व्यापार के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली अपनाते थे जिसमे एक वस्तु की कीमत दूसरी वस्तु देकर चुकानी पडती थी |यातायात के लिए यहाँ के लोग बैलगाड़ी तथा भैंसागाडी का प्रयोग करते थे |
नाप तौल की इकाई 16 के अनुपात में होती थी |यहाँ के लोग सूती वस्त्र का व्यापार भी करते थे | सबसे पहले कपास की खेती यही के लोगो ने करना शुरू की थी यूनानियों ने कपास को सिंडन कहा है |सिंधू सभ्यता का पश्चिम एशिया तथा मिस्त्र से व्यापारिक सम्बन्ध था जिसके साक्ष्य यहाँ की मुहरों तथा वस्तुओं से मिलते है| इस सभ्यता के लोग लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे जिन पर काले रंग से डिज़ाइन किया जाता था | यहाँ से लोहे के कोई साक्ष्य नही मिले है जिससे ज्ञात होता है की यहाँ के लोग लोहे से परिचित नही थे |
सिंधू सभ्यता की सामाजिक स्थिति
यहाँ से अधिक संख्या में स्त्रीयों की मिट्टी की मूर्ती मिली है जिससे अनुमान लगाया जाता है की यहाँ का समाज मात्र्सत्तात्म्क था यहाँ के लोग संतुष्ट तथा सुखी जीवन व्यतीत करते थे |सिंधू सभ्यता का समाज चार वर्गों में विभाजित था पुरोहित वर्ग ,योद्धा वर्ग ,व्यापारी या शिल्पकार वर्ग एवं श्रमिक वर्ग| क्योंकि यहाँ अमीरों तथा गरीवों के घर एक दूसरे के आस – पास ही मिले है जिससे ज्ञात होता है की इस सभ्यता में भेदभाव नही था|
यहाँ के लोग मिट्टी के अलावा सोने ,चांदी तथा तांबे के बने बर्तनो का प्रयोग करते थे |यहाँ के लोग शाकाहारी तथा मासाहारी दोनों तरह का भोजन करते थे| मछली तथा चिड़िया का शिकार खाने के अलावा मनोरंजन से साधन के रूप में भी करते थे| शिकार के अलावा मनोरंजन के लिए चौपड तथा पासा खेलना ,नाच – गाना करना , पशुओं को आपस में लड़ाना आदि साधनों का प्रयोग करते थे|सिंधू सभ्यता की खुदाई में आग से पकी मिट्टी (टेराकोटा )की बनी मूर्तियाँ मिली है |
यहाँ के स्त्री – पुरुष आभूषणों में कर्णफूल ,कंठहार ,भुजबंद ,कडा ,हंसुली पहनते थे जो सोने ,चांदी ,हाथी दन्त तथा सीप से बनाये जाते थे | खुदाई में मिले सिलाई बुनाई के उपकरणों जैसे तकली ,सुई आदि से ज्ञात होता है की यहाँ के लोग कपडे भी सिलते तथा बुनते थे तथा ये ऊनी और सूती दोनों तरह के कपड़े पहनते थे |
पर्दा प्रथा तथा वैश्यवृति भी समाज में प्रचलित थी |
समाज में शवों को गाड़ने तथा जलाने दोनों प्रथा प्रचलित थी हडप्पा से शवों को गाड़ने तथा मोहनजोदड़ो से शवो को दफनानें के साक्ष्य मिले है| लोथल तथा कालीबंगा से दो लोगो को साथ में दफनाने के साक्ष्य मिले है |
सिंधू सभ्यता की धार्मिक स्थिति
यहाँ के लोग मातृदेवी की पूजा करते थे ,इसके साथ पशुपतिनाथ ,महादेव ,लिंग ,योनी तथा वृक्षों व पशुओं की पूजा भी करते थे |पशुओं में कूबड वाला बैल विशेष पूजनीय पशु था , जिसे यहाँ के लोग पशुपतिनाथ का वाहन मानते थे ,यहाँ एक सींग वाले गैंडे की भी पूजा होती थी| हडप्पा से मिले स्वास्तिक के चिह्न से ज्ञात होता है की यहाँ के लोग सूर्य की उपासना भी करते थे |
हडप्पा से मिले स्त्री के गर्व से निकलते हुए पौधे से ज्ञात होता है की धरती उको उर्वरता की देवी मानकर यहाँ के लोग उसकी पूजा करते थे|यहाँ के लोग अंध-विश्वासी थे, ये लोग भूत – प्रेत ,जादू -टोना पर भी विशवास करते थे|
इस सभ्यता से कहीं भी मंदिर या मूर्ती पूजा के साक्ष्य नही मिले है |
सिंधू सभ्यता की लिपि
सिंधू सभ्यता की लिपि भाव चित्रात्मक है ,जिसे अभी तक पढ़ा नही जा सका |पहली पंक्ति में यह लिपि दायें से बाएं लिखी जाती है तथा दूसरी पंक्ति में बाएं से दायें लिखी जाती जाती है इस लिपि को लिखने का तरीका ब्रुस्तोफेदम कहलाता है लिपि में चित्र तथा अक्षर दोनों का प्रयोग किया गया है जिसमे से सबसे ज्यादा चित्र U आकर तथा मछली के आकर के है|
सिंधू सभ्यता की अधिकांश लिपि मुहरों तथा सिक्कों से प्राप्त हुई है यहाँ की मुहरे सेलखडी से निर्मित हैं |
सिंधू सभ्यता की अन्य महत्वपूर्ण बातें
इस सभ्यता के नगरों के घर व सडकें सुनियोजित ढंग से बनाई गयी थी तथा इन्हें बनाने में ग्रीड पद्धति का इस्तेमाल किया गया था |यहाँ घर पक्की ईटों के बने होते थे यहाँ नगर दो भागों में बटे होते थे उपरी भाग ओर निचली भाग |उपरी भाग ईटों के चबूतरे पर बनाया जाता था ओर उसके चारो तरफ दीवार बनाई जत्ती थी जिससे ज्ञात होता था की उपरी भाग निचले भाग से भिन्न है |उपरी भाग में प्राय: भण्डारगृह , धार्मिक इमारतें तथा महत्वपूर्ण कार्यशालाएं होती थी तथा निचली भाग लोगों के रहने के लिए था |
इस सभ्यता की सड़के सीढ़ी होती थी जो एक – दूसरे को समकोण पर काटती थी सड़क तथा गली के दोनों ओर पक्की नालियां बनाई गयी है
इस सभ्यता में घर के दरवाजे मुख्य सड़क की तरफ न खुलकर पीछे की तरफ खुलते थे लेकिन लोथल में दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते हुए पाए गये है |
सिंधू सभ्यता के प्रमुख स्थल ,नदी ,उत्खननकर्ता एवं वर्तमान स्थिति
स्थल | नदी | खोजकर्ता | वर्ष | स्थिति |
हडप्पा | रावी | दयाराम साहनी | 1921 | पकिस्तान का मोंटगोमरी जिला |
मोहनजोदड़ो | सिंधू | राखलदास बनर्जी | 1922 | पाकिस्तान के सिंध प्रान्त का लरकाना जिला |
चन्हुदड़ो | सिंधू | गोपाल मजूमदार | 1931 | सिंध प्रान्त (पकिस्तान) |
कोटदीजी | सिंधू | फजल अहमद | 1953 | सिंध प्रान्त का खैरपुर स्थान |
सुतकांगेडोर | दाशक | ऑरेंज स्टाइल,जॉर्ज डेल्स | 1927,1962 | पाकिस्तान के मरकान में समुद्र तट के किनारे |
रंगपुर | मादर | रंगनाथ राव | 1953-54 | गुजरात का काठियावाड़ जिला |
लोथल | भोगवा | रंगनाथ राव | 1955-62 | गुजरात का अहमदाबाद जिला |
धोलावीरा | _ | रवींद्र सिंह विष्ट | 1990-91 | गुजरात का कच्छ जिला |
रोपड़ | सतलज | यज्ञदत्त शर्मा | 1953-56 | पंजाब का रोपड़ जिला |
कालीबंगा | घग्घर | बी. बी. लाल, बी. के थापर | 1953 | राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला |
आलमगीरपुर | हिंडन | यज्ञदत्त शर्मा | 1958 | उत्तरप्रदेश का मेरठ जिला |
बनमाली | रंगोई | रवींद्र सिंह विष्ट | 1974 | हरियाणा का हिसार जिला |
सिंधू सभ्यता का पतन
अलग अलग इतिहासकारों ने इस सभ्यता के पतन के अलग अलग मत दिए है , किसी ने जलवायु परिवर्नतन ,नदियों के जलमार्ग में परिवर्तन तो किसी ने आर्यों का आक्रमण ,सामाजिक ढांचे में बदलाव और भूकंप आदि से इस सभ्यता का पतन बताया है , इन सब में से बाढ से इस सभ्यता का अंत होने का मत ज्यादा प्रभाव में है जैसे औरेल स्ट्रेन ,ए. एन घोष के अनुसार जलवायु परिवर्तन ,स्टुअर्ट पिग्ग्ट के अनुसार बाहरी आक्रमण या आर्यों का आक्रमण ,वाल्टर फेयार्सर्विस के अनुसार वनों की कटाई ,संसाधनों की कमी तथा एम.आर. साहनी के अनुसार बाढ़ से इस सभ्यता का पतन होना मन गया है| तकरीबन 1000 साल तक इस सभ्यता ने वास किया |
सिंधु घाटी सभ्यता प्रश्नोत्तरी
सिंधू सभ्यता का सर्वाधिक मान्यता प्राप्त समय काल क्या है ?
हडप्पा सभ्यता की उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली का पता कहा से चलता है?
हडप्पा सभ्यता की मुद्राओं का निर्माण किस धातु के प्रयोग से हुआ है ?
सिंधू सभ्यता में घरों में कुओं के अवशेष किस पुरास्थल से प्राप्त हुए है ?
सिंधू सभ्यता के समूचे क्षेत्र का आकर कैसा था ?
सिंधू सभ्यता का काल किस युग में पड़ता है ?
पुरोहित आवास तथा महाविद्यालय भवन के अस्तित्व के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए है ?
हडप्पा सभ्यता में ताम्बे का रथ कहा से प्राप्त हुआ है ?
हडप्पा सभ्यता की जानकारी का मुख्य स्त्रोत क्या है ?
हडप्पावासी किस पशु से परिचित नही थे ?
हडप्पा सभ्यता स्थलों के सर्वाधिक संकेद्रण किस नदी के किनारे है ?
हडप्पा का नखलिस्तान किस पुरातात्विक स्थल को कहा जाता है ?
हडप्पा सभ्यता में किस स्थान से संयुक्त फसल उगाने का प्रमाण मिला है ?
सिंधू घाटी सभ्यता के किस नगर में दुर्ग नहीं था ?
सिंधू सभ्यता के अवशेषों में व्यापारिक और आर्थिक विकास का घोतक क्या है?
सिंधू सभ्यता के लोगो ने घरों के विन्यास के लिए कौन सी पद्दति अपनाइ ?
हडप्पा एवं मोहनजोदड़ो की पुरातात्विक खुदाई के प्रभारी कौन थे ?
गोदीबाडा (बंदरगाह) के अवशेष कहाँ से मिले हैं ?
सिंधू घाटी सभ्यता में पैमाने की खोज कहाँ हुई ?
सिंधू सभ्यता की खुदाई में अभी तक किस धातु के अवशेष प्राप्त नही हुए है ?
आशा है आपको सिंधू घाटी सभ्यता से जुडी जानकारी जिसमे सिंधू घाटी सभ्यता की आर्थिक ,सामाजिक , धार्मिक स्थिति और सिंधू घाटी सभ्यता की लिपि , इसका पतन आदि सब समझ आया होगा इस पेज को शेयर जरूर करें |
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