सिद्धांत
1927 में जर्मन भौतिक विज्ञानी व नोबेल पुरस्कार विजेता वर्नर हाइजेनबर्ग के द्वारा तैयार किया गया अनिश्चितता सिद्धांत कहता है कि हम एक कण की स्थिति तथा गति जैसे फोटॉन अथवा इलेक्ट्रॉन, दोनों को पूर्ण रूप के साथ नहीं जान सकते हैं जितना ज्यादा हम कण की स्थिति को कम करते हैं, उतना ही कम हम इसकी गति व इसके बारे में जानते है
ये तरंग दैर्ध्य बहुत कम होती है इनका पता भी लगा पाना मुस्कील है। अब यदि हमे तरंग दैर्ध्य का ही नही पता हो तो उसके कण का संवेग भी नहीं जाना जा सकता। ऐसे में हमे वस्तुओं के कण और तरंग व्यवहार दोनों को ही मिला कर देखना होगा की स्थान ओर संवेग दोनो को एक साथ जानने में क्या क्या दिक्कतें आती हैं।
निहितार्थ –
हाइजेनबर्ग ने जाना कि अनिश्चितता के संबंधों का गहरा प्रभाव था। सबसे पहले यदि हम हाइजेनबर्ग के इसी तर्क को स्वीकारते हैं कि प्रत्येक अवधारणा का अर्थ केवल इसे मापने के लिए प्रयोग किए गए प्रयोगों के निहित में है तो हमें इस बात को मानना चाहिए कि जिन चीजों को मापा नहीं जा सकता है उनका हकीकत में भौतिकी में कोई अर्थ नहीं होता है ।
प्रवर्तक –
उत्पादन की तकनीक में परिवर्तन उद्योग में आने वाली नई फर्मों से प्रतिस्पर्धा। ये सब परिवर्तन अनिश्चितता का कारण बनते हैं तथा लाभ सकारात्मक या नकारात्मक का पता लगाते हैं। Fh नाइट जिन्होंने मुनाफे के अनिश्चितता सिद्धांत का सिद्धांत दिया है बीमा योग्य व गैर-बीमा योग्य जोखिम के मध्य अंतर करते हैं।
हानि –
उद्यमी हानि तभी सहन करेगा जब उसे लाभ की आने अपेक्षा हो। इस सिद्धान्त में छोड़ दिया गया है जैसे व्यवसाय में समानता का कार्य। आलोचक अनिश्चितता प्राप्त करना एक अलग कार्य के रूप में नहीं स्वीकारते । संयुक्त पूँजी कम्पनी के हिस्सेदारों को जो लाभ मिलता है उनमें वे अनिश्चिततओं का सामना नहीं करते।
लाभ –
नाइट के तहत उद्यमी को ऐसी अनिश्चितता को सहन करने का पुरस्कार ही लाभ के रूप में मिलता है। व्यवसाय में जितनी अधिक अयोग्य अनिश्चितताएँ होंगी
उद्यमी की लाभ की मात्रा उतनी ही ज्यादा होगी।
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