• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
Mechanic37

Mechanic37

इंजीनियरिंग और फिजिक्स,केमिस्ट्री

  • भौतिक विज्ञान
  • इंजीनियरिंग नोट्स
    • मैकेनिकल इंजीनियरिंग
    • इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग
    • इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग
    • इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स
  • रसायन
  • जीव विज्ञान
  • कंप्यूटर
Home » साइक्लोट्रोन क्या है ? इसका सिद्धांत | संरचना | कार्यविधि

साइक्लोट्रोन क्या है ? इसका सिद्धांत | संरचना | कार्यविधि

November 23, 2022 by Er. Mahendra Leave a Comment

1.5
(2)

साइक्लोट्रोन क्या है ? इसका सिद्धांत | संरचना | कार्यविधि

साइक्लोट्रोन क्या है

साइक्लोट्रोन

आज के इस टॉपिक में हम साइक्लोट्रोन के बारे में समझेंगे जिसमे हम साइक्लोट्रोन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे जिसमे हम देखेंगे की साइक्लोट्रोन क्या होता है तथा इसका सिद्धांत क्या होता है और साथ ही साथ हम यह भी देखेंगे की इसकी संरचना क्या होती है और साइक्लोट्रोन की कार्यविधि किस प्रकार होती है इन सभी बिन्दुओ पर एक –एक करके चर्चा करेंगे तो चलिए शुरुआत करते है यह समझना की साइक्लोट्रोन क्या होता है |

साइक्लोट्रोन का आविष्कार 1932 ई. में प्रोफेसर ई. ओ. लारेंस ने वर्कले इंस्टिट्यूट, कैलिफोर्निया में इसका आविष्कार किया था। जिसमे उन्होंने अपनी खोज के आधार पर बताया की साइक्लोट्रोन एक ऐसी युक्ति है जिसका उपयोग करके धनावेश कणों को उच्च वेग से त्वरित किया जाता है या फिर ऐसे कहे की धनावेशित कणों या आयनों की उर्जा को साइक्लोट्रोन की सहायता से बड़ाया जा सकता  है |

अर्थात जब किसी प्रोटोन या अल्फा कण के वेग या उसकी गति को बड़ाने की आवश्यकता होती है तो उसके लिए साइक्लोट्रोन का उपयोग किया जाता है | अब हम इसके सिद्धांत को समझेंगे की ये किस सिद्धांत पर आधारित होता है |

साइक्लोट्रोन का सिद्धांत

इसका सिद्धांत इस प्रकार होता है की जब किसी धनावेशित कण को उच्च आवृति वाले विद्युत क्षेत्र में प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग करके बार बार गति करवाई जाती है तो इस आवेशित कण की गति बड जाती है तथा इसकी उर्जा उच्च हो जाती है |

इसका सिद्धांत इस बात पर भी निर्भर करता है की इसके अन्दर लगे डीज के बीच लगने वाले प्रत्यावर्ती विभवान्तर की आवृति डीज के अन्दर आवेशित कणों के परिक्रमण की आवृति के बराबर होनी चाहिए इस प्रकार से इसका सिद्धांत होता है अब इसके बाद हम इसकी संरचना को समझेंगे |

साइक्लोट्रोन की संरचना

अगर हम साइक्लोट्रोन की संरचना की बात करे तो इसको बनाने के लिए धातु के दो पात्र लेते है जिनकी रचना D अक्षर के जैसी होती है इसलिए इन्हें डीज ( Dees ) कहा जाता है इनकी संख्या दो होती है इसलिए इनको D1 तथा D2 नाम दिया गया    है | अब दोनों डीज D1 तथा D2 को कुछ दूरी पर रखा जाता  है तथा इनके बीच में उच्च आवृति का प्रत्यावर्ती विभवान्तर उत्पन्न किया जाता है तथा इसके लिए इनको किसी AC स्त्रोत से जोड़ा जाता है |

अब जब AC स्त्रोत से इनके बिच धारा प्रवाहित की जाती है तो इनके बीच उच्च आवृति का विद्युत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है इस विद्युत क्षेत्र की दिशा इन डीज के तलों के लम्बवत होती है |

अब जिस भी धनावेशित कण की उर्जा या उसका वेग बडाना होता है उसको दोनों डीज के बीच में रखा जाता है जहा उच्च आवृति का विद्युत क्षेत्र उत्पन्न किया गया है अब इस पूरी व्यवस्था को दो प्रबल चुम्बको के बीच रखा जाता है इस प्रकार इसकी संरचना होती है | अब हम इसकी कार्यविधि के बारे  में बात करते है |

साइक्लोट्रोन की कार्यविधि

साइक्लोट्रोन की संरचना

साइक्लोट्रोन की कार्यविधि को समझने के लिए हम मानते है की एक आयन है जिसका द्रव्यमान m है तथा इसका आवेश +q  है अब इस आवेश को हमने दोनों डीज D1 तथा D2 के बीच रखा जाता है और क्योंकि इसे AC स्त्रोत से कनेक्ट किया गया है इसलिए इसमें विभवान्तर उत्पन्न होता है तथा हर आधे चक्कर के बाद इन डीज की ध्रुवता आपस में बदल जाती है |

अब हमने माना की प्रारम्भ में D1 धनावेशित है तथा D2 ऋणावेशित है इसलिए जैसे ही धनावेशित कण को इनके बीच रखा जाता है तो प्रारंभ में यह धनावेशित कण D2 की तरफ आकर्षित होता है और यह कण एक व्रतिय Path में गति करने लगता है जैसे ही इसका आधा परिक्रमण पूरा होता है इसकी उर्जा में वृद्धि हो जाती है और इसके बाद दोनों डीज की ध्रुवता आपस में बदल जाती है |

अर्थात अब D1 ऋणावेशित हो जाता है और D2 धनावेशित हो जाता है और अब यह धनावेशित कण D1 की तरफ आकर्षित होने लगता है अब फिर से इसकी उर्जा में वृद्धि हो जाती है इस प्रकार जब एक चक्कर पूरा हुआ तो आधे –आधे चक्कर में करके दो बार इसकी उर्जा में वृद्धि होती है |

लेकिन जब यह प्रक्रिया बार – बार दोहराई जाती है तो हर बार उर्जा बढती है और इस प्रकार उर्जा में वृद्धि होती है और साथ ही साथ इस कण के इस वृतीय Path की त्रिज्या में भी वृद्धि होती है और जब इसके वृतीय Path की त्रिज्या डीज की त्रिज्या के बराबर हो जाती है इस प्रकार अंत में धनावेशित कण उच्च वेग में पहुँच जाता है और इस डीज में इस कण के बाहर निकलने के लिए व्यवस्था होती है जिससे इस कण को बाहर निकाल लिया जाता है  |

और इस प्रकार इस धनावेशित कण को लक्ष्य पर भेजा जाता है इस प्रकार इस साइक्लोट्रोन की कार्यविधि होती है जिसमे किसी धनावेशित कण को उच्च वेग तक उसकी उर्जा बडाई जाती है और फिर उसको लक्ष्य तक पहुँचाया जाता है | अब हम इसके उपयोग को समझ लेते है |

साइक्लोट्रोन के उपयोग

साइक्लोट्रोन का उपयोग विभिन्न क्षेत्रो में किया जाता है जैसे की –

1 . साइक्लोट्रोन का उपयोग करके नाभिकीय अभिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है |

2 . इसका उपयोग चिकित्सा के क्षेत्र में भी व्यापक रूप से होता है |

3 . साइक्लोट्रोन का उपयोग करके विभिन्न प्रकार के रेडियो एक्टिव पदार्थ बनाए जाते है |

इस प्रकार इसके बहुत से उपयोग होते है |

यह पेज आपको कैसा लगा ?

Average rating 1.5 / 5. Vote count: 2

Share this:

  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)
  • Click to share on Facebook (Opens in new window)
  • Click to print (Opens in new window)

Filed Under: इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, धारा के चुम्बकीय प्रभाव और चुम्बकत्व Tagged With: साइक्लोट्रोन

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

विषय

  • भौतिक विज्ञान
  • मैकेनिकल इंजीनियरिंग
  • इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग
  • इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग
  • रसायन विज्ञान
  • जीव विज्ञान 
  • कंप्यूटर 
  • इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स

Footer

सोशल मीडिया पर जुड़ें

  • Facebook
  • Twitter
  • Instagram
  • Youtube

बनाना सीखें

  • ड्रोन कैसे बनाएं ?
  • रोबोट कैसे बनाएं ?
  • वेबसाइट कैसे बनाएं ?
  • एंड्राइड एप कैसे बनाएं ?

Policies

  • Shipping and Delivery
  • Refund and Cancellation Policy
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions

Shop

  • Shop
  • My account
  • Checkout
  • Cart

Mechanic37 2015 - 2024

  • साइटमैप
  • संपर्क करें
  • हमारे बारे में
  • विज्ञापन दें
  • Mechanical Notes
  • Electrical Notes
  • भौतिक विज्ञान
  • इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग
  • रसायन विज्ञान
  • जीव विज्ञान
  • कंप्यूटर सीखें
  • इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स
  • ऑटोकैड टुटोरिअल