अरस्तु को विज्ञान , जीव विज्ञान , जंतु विज्ञान का जनक कहा जाता हैं |
ब्रह्ममांड की उत्पत्ती आज से 15 अरब बर्ष पूर्व महाविस्फोट ( Big bang ) के दौरान हुई जिसे महाविस्फोट सिध्दांत ( Big bang theory ) कहते हैं |
ज्वलित गैसीय पिण्ड से प्रथ्वी की उत्पत्ती आज से लगभग 4.6 अरब बर्ष पूर्व हुई थी |
आदिसागर में जीवन की उत्पत्ति आज से 3.8 अरब बर्ष पूर्व अर्थात् अर्कीयोजोइक महाकल्प से सबसे पहले हुई |
ए. आई. औपैरिन ( रूसी जीव रसायन शास्त्री ) ने भौतिकवाद या पदार्थवाद ( Materialistic theory – 1924 ) के नाम से अपनी पुस्तक ” The origin of life “ में बताया |
आदि ( प्राचीन ) वायुमंडल अपचायक था जबकी इसके विपरीत वर्तमान वायुमंडल उपचायक या ऑक्सीकारक वायुमंडल हैं | क्योंकि इसमें हाइड्रोजन के परमाणु सर्वाधिक क्रियाशील एवं संख्या में अधिक थे | आदिवायुमंडल में ऑक्सीजन के परमाणु स्वतंत्र परमाणु नहीं थे ये हाइड्रोजन के साथ मिलकर जल के रूप में थे | ताप के कम होने पर कार्बनिक यौगिकों जैसे – मीथेन , सुगर , वसीय अम्ल , अमीनो एसिड , प्युरिन्स आदि का निर्माण हुआ | इन कार्बनिक यौगिकों के बनने के लिए ऊर्जा अल्ट्रावायलट किरणें तथा कॉस्मिक किरणों द्वारा प्राप्त हुई | इन कार्बनिक यौगिकों द्वारा जीवन की उत्पत्ति हुई |
ओपेरिन की परिकल्पना को 1955 ई. वी. में अमरीकी वैज्ञानिक स्टैनले मिलर ने सिध्द किया | प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीवों द्वारा ऑक्सीजन का निर्माण हुआ | जिससे ऑक्सीजन के उत्पादन द्वारा वायुमंडल अपचायक से ओक्सीकारक में बदल गया | इस परिवर्तन के कारण इसे ऑक्सीजन क्रांती कहा जाता हैं |
जीवविज्ञान
सजीवों ( जीवधारियों ) एवं उनसे संबंधित क्रियाओं का अध्ययन जिस शाखा के अंतर्गत किया जाता हैं जीवविज्ञान कहलाती हैं |
1802 में सर्वप्रथम लैमार्क , ट्रेविरेनस ने जीवविज्ञान शब्द का प्रयोग किया |
जीवविज्ञान की शाखाएँ
जीवविज्ञान की दो प्रमुख शाखाएँ निम्न हैं |
- वनस्पति विज्ञान
- जन्तु विज्ञान
1. वनस्पति विज्ञान
ग्रीक भाषा के बास्कीन शब्द से बॉटनी शब्द की उत्पत्ती हुई | जिसका अर्थ हैं – चरना
Historia plantarum में थियोफ्रेस्टस ( वनस्पति विज्ञान के जनक ) ने 500 प्रकार के पौधों का वर्णन किया |
2. जन्तु विज्ञान
Historia animalium में अरस्तु ( जन्तु विज्ञान के जनक ) ने 500 जंतुओं के स्वभाव , जनन , वर्गीकरण तथा उनकी रचना का वर्णन किया |
जैविक क्रियाएँ जैसे – व्र्ध्दी , प्रचलन , श्वसन , पोषण , प्रजनन आदि जिस वस्तु में पायी जाती हैं , उसे सजीव कहते हैं | जैविक क्रियाओं के आधार पर निर्जीवों को सजीवों से अलग कर पाना आसान ( संभव ) होता हैं |
सजीवों के लक्षण
सजीवों में निम्न लक्षण पाए जाते हैं |
1. कोशिकीय संघठन ( Cellular organization )
प्रत्येक जीव अनेक सूक्ष्म कोशिकाओं से बना होता हैं | कोशिकाएँ शरीर की मूलभूत , रचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई हैं |
2. जीवद्रव्य ( Protoplasm )
कोशिकाओं में जैव पदार्थ पाया जाता हैं , जिसे जीवद्रव्य कहते हैं | जीवद्रव्य वास्तविक जीविक पदार्थ होता हैं | जो जीवों की भौतिक आधार शिला हैं | जीवद्रव्य को जैविक क्रियाओं का केंद्र कहते हैं | जो जलयुक्त पदार्थ ,लसलसा , रंगहीन , तरल , गाढ़ा होता हैं | जीवद्रव्य की रचना अकार्बनिक लवणों , प्रोटीन , वसा , कार्बोहाइड्रेट द्वारा होती हैं | जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार माना गया हैं |( जुलियस हक्सले के अनुसार )
3. आक्रति एवं आकार
अलग-अलग आक्रति एवं आकार के जीव होते हैं | इनके आधार पर इनकी पहचान की जाती हैं | विविधता जीवधारियों का महत्वपूर्ण गुण हैं |
4. उपापचय ( Metabolism )
जीवों की कोशिकाओं में होने वाले समस्त जैव रासायनिक कार्यों को उपापचय कहते हैं |
उपापचय दो रूपों में पूर्ण होती हैं |
- अपचय ( Catabolism )
विनाशात्मक ( Dustructive ) जैसे – श्वसन एवं उत्सर्जन |
- उपचय ( Anabolism )
रचनात्मक ( Constructive ) जैसे – पोषण |
लघु रासायनिक उद्योग शालाओं की उपमा सजीव कोशिकाओं को प्रदान की गयी हैं |
5. श्वसन ( Respiration )
श्वसन जीवधारियों का प्रमुख लक्षण हैं | श्वसन के द्वारा सजीव वायुमंडल से प्राप्त करते हैं | तथा को बाहर निकालते हैं | वसा , कार्बोहाइड्रेट का विघटन श्वसन के द्वारा होता हैं | और ऊर्जा उत्पन्न होती हैं | यह ऊर्जा ATP के रूप में निकलती हैं | जो सम्पूर्ण जैविक क्रियाएँ चलाने में सक्षम होती हैं |
6. प्रजनन ( Reproduction )
प्रत्येक जीव प्रजनन की क्रिया के माध्यम से अपने ही जैसा जीव उत्पन्न करते हैं | प्रजनन की क्रिया के द्वारा ही जीव अपने वंश को बड़ाते हैं |
7. पोषण ( Nutrition )
जीव अपने कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा पोषण द्वारा प्राप्त करते हैं | प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधें अपना भोजन बनाते हैं जबकि जन्तु भोजन के लिए पौधों पर आश्रित होते हैं |
8. अनुकूलन ( Adaptation )
अनुकूलन की क्षमता जीवों में पायी जाती हैं | क्योंकि संरचना एवं कार्यों में परिवर्तन करने के लिए अनुकूलन की आवश्यकता होती हैं |
9. संवेदनशीलता ( Sensitivity )
सजीव संवेदनशील होते हैं | क्योंकि जीव वातावरण में होने वाले परिवर्तन का अनुभव करते हैं |
10. उत्सर्जन ( Excretion )
सभी सजीवों द्वारा देह में उपस्थित विषैले ( हानिकारक ) पदार्थ – , यूरिक अम्ल आदि बाहर निकाले जाते हैं | जीवों द्वारा पूर्ण हुयी इस क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं |
11. जीवन चक्र ( Life cycle )
जीवधारिओं का जीवन अत्यंत सूक्ष्म भ्रूण से प्रारंभ होता हैं तथा पोषण वृध्दि एवं संतानों को जन्म देने के बाद नष्ट हो जाते हैं | जीवन-मरण के चक्र को संतान वृध्दि कर पूर्ण करते हैं |
निम्न जीवों की जीवन अवधि या काल –
- कछुआ 200 – 300 वर्ष
- पीपल 200 वर्ष
- साइकस 500 – 1000 वर्ष
- सिकोया 800 – 1500 वर्ष ( व्रक्ष )
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