पुरानी कोशिकाओं से विभाजन द्वारा नयी कोशिका के निर्माण की क्रिया कोशिका विभाजन कहलाती हैं |
जंतु कोशिकाओं में कोशिका विभाजन की खोज Flemming ने की |
कोशिका चक्र ( Cell cycle )
कोशिका के निर्माण से लेकर , कोशिकाओं के विभाजन द्वारा नयी कोशिकाएं बनने की सारी प्रक्रिया को कोशिका चक्र कहते हैं |
हावर्ड और पेल्फ़ ने कोशिका चक्र को 4 अवस्थाओं में दर्शाया हैं –
1.अवस्था
अवस्था में RNA तथा प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया होती हैं |
2. S अवस्था
S अवस्था में DNA संश्लेषण की क्रिया होती हैं |
3. अवस्था
अवस्था में विभाजन की तैयारी होती हैं |
4. M अवस्था
M अवस्था में विभाजन होता हैं , जिसे चार चरणों में व्यक्त करते हैं –
- प्रोफेज
- मेटाफेज
- टीलोफेज
- साइटोकाइनेसिस
अंतरावस्था ( Interphase )
अंतरावस्था के अंतर्गत , S , अवस्थाएं आती हैं , अंतरावस्था दो विभाजनों के मध्य की अवस्था हैं | अंतरावस्था में कोशिका उपापचयी क्रियाओं द्वारा विभाजन की तैयारी होती हैं |
माइटोटिक प्रावस्था ( Mitotic phase )
माइटोटिक प्रावस्था को M-phase भी कहते हैं | माइटोटिक प्रावस्था में केन्द्रक एवं कोशिका द्रव्य का बंटबारा होता हैं | कोशिका विभाजन ( Cytokinesis ) तथा केन्द्रक विभाजन ( Karyokinesis ) कहते हैं | DNA का द्विगुणन कोशिका विभाजन से पहले तथा बाद में केन्द्रक तथा कोशिका द्रव्य का विभाजन होता हैं |
कोशिका विभाजन के प्रकार
कोशिका विभाजन प्रमुख रूप से तीन प्रकार का होता हैं |
- असूत्री विभाजन
- सूत्री विभाजन
- अर्ध्द सूत्री विभाजन
1. असूत्री विभाजन ( Amitosis / Amitotic )
असूत्री विभाजन की खोज रेमक ने की | असूत्री विभाजन द्वारा जनक कोशिका का केन्द्रक दो भागों में बँट जाता हैं तथा इसके बाद कोशिका द्रव्य में संकुचन के दौरान कोशिका द्रव्य दो भागो में बँट जाता हैं |इस प्रकार दो संतति कोशिकाओं का निर्माण हो जाता हैं | यह विभाजन प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं जैसे – जीवाणु , नीली हरी शैवालों , यीस्ट , अमीबा , प्रोटोजोआ में होता हैं |
2. सूत्री या समसूत्री विभाजन ( Mitosis )
सूत्री विभाजन की खोज डब्ल्यू फ्लेमिंग ने की | स्टार्सबर्गर ने सूत्री विभाजन का सर्वप्रथम पादप कोशिकाओं में अध्ययन किया | कोशिका विभाजन की वह प्रक्रिया जिसमे एक बार विभाजन से एक समान प्रकार की दो नयी कोशिकाओं का निर्माण होता हैं , लेकिन इस प्रक्रिया के द्वारा उत्पन्न हुयी नई कोशिकाओं में क्रोमोसोम की संख्या व उनका प्रकार अपनी जनक कोशिकाओं के समान होता हैं | सूत्री विभाजन कायिक या दैहिक कोशिकाओं ( Somatic cells ) में पाया जाता हैं |
सूत्री विभाजन के भाग
सूत्री विभाजन के दो मुख्य भाग होते हैं |
- केन्द्रक का विभाजन ( Karyokinesis )
- कोशिका द्रव्य का विभाजन (Cytokinesis )
केन्द्रक का विभाजन दो भागों में बँटा होता हैं
- अंतरावस्था ( Interphase )
- विभाजन प्रावस्था ( Mitotic phase )
3. अर्ध्दसूत्री विभाजन ( Meiosis )
अर्ध्दसूत्री विभाजन की खोज सर्वप्रथम 1905 में फार्मर एवं मूरे ने की |
कोशिका विभाजन की वह प्रक्रिया जिसमें एक बार विभाजन से चार नयी अगुणित कोशिकाओं का निर्माण होता हैं | लेकिन निर्मित हुई नयी कोशिकाओं में क्रोमोसोम की संख्या अपनी जनक कोशिका की तुलना में आधी होती हैं अत: इस विभाजन द्वारा कोशिका व जीवों में क्रोमोसोम की संख्या आधी रह जाती हैं | अर्ध्दसूत्री विभाजन सदैव द्विगुणित कोशिकाओं ( Diploid cells ) में पाया जाता हैं | अर्ध्दसूत्री विभाजन में कोशिका द्रव्य तथा केन्द्रक का दो बार विभाजन होता हैं , इन दो विभाजनों में से प्रथम विभाजन – अर्ध्दसूत्री विभाजन प्रथम ( Reduction division / Meiosis first ) तथा द्वितीय विभाजन अर्ध्दसूत्री विभाजन द्वितीय ( Meiosis Second ) होते हैं |
अर्ध्दसूत्री विभाजन के आख़िरी में चार अगुणित ( Haploid ) कोशिकाओं का निर्माण होता हैं | अर्ध्दसूत्री विभाजन लैंगिक जनन करने वाले जीवों में पाया जाता हैं| अर्ध्दसूत्री विभाजन परागकणों ( Anthers ) , बीजाण्ड ( Ovules ) या बीजाणुधानी ( Sporangia ) तथा जंतुओं के वृषण ( Testis ) एवं अण्डाशय ( Ovary ) में पाया जाता हैं |
अर्ध्दसूत्री विभाजन में सूत्री विभाजन के समान , S , उपअवस्थाएं पायी जाती हैं |
अर्ध्दसूत्री विभाजन के भाग
अर्ध्दसूत्री विभाजन दो भागों में बंटती हैं |
- अर्ध्दसूत्री विभाजन प्रथम
- अर्ध्दसूत्री विभाजन द्वितीय
अर्ध्दसूत्री विभाजन प्रथम
अर्ध्दसूत्री विभाजन प्रथम में चार प्रावस्थायें पायी जाती हैं –
1. प्रोफेज प्रथम
प्रोफेज अत्यंत जटिल लम्बी प्रावस्था हैं , प्रोफेज को निम्न पाँच अधोलिखित अवस्थाओं में विभक्त किया गया हैं
- लेप्टोटीन – इसमें विभाजन की तैयारे की जाती हैं |
- जाइगोटीन – समजात गुणसूत्र जोड़े |
- पेंचीटीन – क्रोसिंग ओवर होना |
- डिप्लोटीन – डिप्लोटीन में क्याजमेटा पर अर्ध्दगुणसूत्र टुकड़ो का आदान – प्रदान होता हैं | ( टेट्रावैलेन्ट स्थिती में )
- डाईकाइनेसिस – केन्द्रक कला एवं केंद्रिका नष्ट हो जाती एवं क्रोमोसोम दूर हट जाते हैं |
2. मेटाफेज प्रथम
मेटाफेज में क्रोमोसोम और छोटे हो जाते एवं लम्बाई में फट कर डायड ( Dyad ) का रूप ले लेते हैं , जिसमें दोनों क्रोमेटिड सेन्ट्रोमीयर पर जुड़े होते हैं तथा केंद्रिका अद्रश्य हो जाती हैं |
3. एनाफेज प्रथम
इसमें गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर जाते हैं |
4. टीलोफेज प्रथम
टीलोफेज प्रथम में केन्द्रक कला एवं केंद्रिका स्पष्ट हो जाती तथा गुणसूत्र ध्रुवों पर एकत्रित हो जाते हैं |
2. अर्ध्दसूत्री विभाजन द्वितीय
अर्ध्दसूत्री विभाजन द्वितीय की प्रक्रिया सूत्री विभाजन के समान होती तथा अर्ध्दसूत्री विभाजन के पूरे होने पर चार अगुणित ( Haploid – x ) नई कोशिकाएं निर्मित होती हैं | निषेचन ( Fertilization ) की क्रिया के समय नर एवं मादा युग्मक के संयोजन से गुणसूत्र की संख्या भ्रूण ( Zygote ) में पुन: द्विगुणित (Diploid -2x ) हो जाती हैं |
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