ऊष्मा क्या है इसकी परिभाषा,मात्रक इसका सूत्र ऊष्मा के प्रकार गुप्त ऊष्मा,विशिष्ट ऊष्मा, कैलोरी ऊष्मा का संचरण चालन,संवहन और विकिरण और इनसे जुडी लगभग हर जानकारी जो exams में आती है इस पेज पर है पूरा पड़िए एक एक लाइन important है इसकी
उष्मा :-ऊष्मा ऊर्जा का ही एक रूप होती है। अर्थात् जब किसी निकाय तथा उसके चारो ओर के परिवेश के मध्य जब उनके तापमान मे अन्तर हेाता है तो ऊर्जा का आदान-प्रदान हेाने लगता है। यह आदान-प्रदान उष्मा के रूप में होता है।
उष्मा वह भोतिक राशि है जो किसी वस्तु की प्रकृति अर्थात् उसके ठण्डे हेाने अथवा गर्म हेाने का बोध कराती है।यह ऊर्जा का ही एक प्रकार हेाती है
अन्य शब्दो में कहे तो जब दो वस्तुओं के तापमान में अन्तर होने के कारण उनके मध्य ऊर्जा के आदान-प्रदान के फलस्वरूप उनके तापमान में हेाने वाली व्रद्धि या कमीं को ही हम उष्मा कहतें हैं।
जब किसी निकाय का तापमान उसके चारों ओर उपस्थित परिवेश के तापमान से अधिक होता है तो निकाय के अणुओं की गतिज ऊर्जा परिवेश के अणुओं के मध्य हेाने वाली गतिज ऊर्जा से अधिक होती है
जब हम निकाय ओर परिवेश को परस्पर संपर्क में लाते है तो संतुलन अवस्था को प्राप्त करने के लिए उर्जा निकाय के अणुओं से निकलकर परिवेश के अणुओं के मध्य प्रवाहित होने लगती है
गर्म द्रव्य की गतिज ऊर्जा ज्यादा और वही ठंडे द्रव्य की गतिज ऊर्जा कम होती है
उष्मा का संचरण तापो के अंतर के कारण ही होता है इसे हम एक उदाहरण के माध्यम से समझने की कोशिश करते है माना दो पात्र लेते है एक मे गर्म पानी लेते है और एक मे ठंडा पानी लेते है हम हम गर्म पानी मे ठंडा पानी मिला देते है तो इन दोनो पानी मे उष्मा का संचरण तब तक होता रहेगा जब तक की उनका ताप बराबर ना हो जाए
जिससे परिवेश का तापमान बढने लगता है तथा निकाय का तापमान कम होने लगता है तापमान मे होने वाली यह कमी अथवा व्रद्धि उष्मा के रूप मे निकलती है यह प्रक्रिया तब तक प्रभावी रहती है जब तक निकाय ओर परिवेश के तापमान समान नही हो जाते है।
उष्मा की मात्रा केा Q के द्वारा प्रदश्रित करतें है । उष्मा की वह मात्रा जो निकाय ग्रहण करता है उसे धनात्मक उष्मा तथा जो ऊष्मा परिवेश ग्रहण करता है उसे ऋणात्मक उष्माकी मात्रा कहते है।
उष्मा के S.I,मानक,ब्रिटिश थर्मल इकाई मात्रक
चूंकि उष्मा ऊर्जा का ही एक रूप है अत: इसकी इकाई ऊर्जा की इकाई के समान होती है
उष्मा की एस.आई इकाई :- जूल होती है
उष्मा की ब्रिटिश थर्मल इकाई :- कैलोरी
उष्मा की मानक इकाई :- वाट होती है
‘जब एक जूल की उष्मा को एक सेकण्ड तक किसी निकाय में प्रवाहित
की जाये तो निकाय मे 1 वाट की उष्मा उत्पन्न होगी।‘
अर्थात् ,
1 वाट =
इसी प्रकार,
कैलोरी की परिभाषा
कैलोरी उष्मा की व्यवहारिक इकाई होती है , इसकी बडीं इकाई किलो कैलोरी होती है।
उष्मा की वह मात्रा जो 1 ग्राम शुद्ध जल का तापमान को 14.5 डिग्री सेल्सियस से 15.5 डिग्री सेल्सियस बडाने के लिए आवश्यक होती है उसे हम 1 कैलोरी उष्मा कहते हैं ।
इसे हम अंतर्राष्ट्रिय कैलोरी या 15° C कैलोरी कहते है।
1 कैलोरी= 4.2 जुल होता है
ब्रिटिश थर्मल इकाई
यह उष्मा की वह मात्रा है जो एक पौंड जल का तापमान 1° F बढाने के लिये जरूरी होता है। इसे हम 1 ब्रिटिश थर्मल इकाई कहते हैं।
विभिन्न इकाईयों के मध्य पारस्परिक संबध
1 कैलोरी =4.186 जूल
1 जूल =0.24 कैलोरी
1 किलो कैलोरी =1000 कैलोरी =4186 जूल
1 बिट्रिश उष्मीय इकाई =252 कैलोरी
1 थर्मल =100000 बिट्रिश उष्मीय इकाई
उष्मा धारिता –
किसी भी निकाय का 1⁰C ताप बड़ाने के लिए जितनी उष्मा की जरूरत होती है उसे ही उष्मा धारिता कहते है
उष्मा धारिता को W से दर्शाते है
जब कोई पदार्थ या निकाय के द्वारा अवशोषित उष्मा उस पदार्थ के तापमान मे वृद्धि करती है ताप मे होने वाली ये वृद्धि स्थानांतरित होने वाली ताप – ऊर्जा के समानुपाती होती है
Q समानुपाती T
Q= wΔT
W = ΔT/Q
उष्मा के प्रकार :-
विशिष्ट उष्मा :-
किसी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा ,उष्माधारिता की हि तरह पदार्थ का एक विशिष्ट गुण हेाती है।
‘’ पदार्थ के एक ग्राम द्रव्यमान का तापमान 1° C बडाने के लिये आवश्यक होने वाली उष्मा की मात्रा केा हम उस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा कहते है।‘’
विशिष्ट उष्मा को S द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
विशिष्ट उष्मा का सूत्र
विशिष्ट उष्मा
यहॅा पर ,
Q =पदार्थ को दी गई उष्मा की मात्रा
M =पदार्थ का द्रव्यमान
⍙T= तापमान मे होने वाली ब्रद्धि
विशिष्ट उष्मा का मात्रक:-
विशिष्ट उष्मा
अथवा,
जूल /किलोग्राम – केलोरी होता है।
विशिष्ट उष्मा का सर्वाधिक मान गैसों के लिये तथा द्रवो के लिये विशिष्ट उष्मा का मान सबसे कम होता है ।
गैसों में तथा अन्य सभी पदार्थो मे हाइड्रोजन के लिये विशिष्ट उष्मा का मान सर्वाधिक होताहै।
द्रवो में पानी की विशिष्ट उष्मा सबसे ज्यादा होती है ।
कुछ विभिन्न पदार्थो की विशिष्ट उष्मा :-
कुछ पदार्थों की विशिष्ट उष्मा (कैलोरी/ग्राम डिग्री सेल्सियस)
1. पानी 1
2. एल्कोहल 0.60
3. बर्फ 0.50
4. तारपीन का तेल 0.42
5. एल्युमिनियम 0.21
6. कार्बन 0.17
7. सीसा 0.03
गुप्त उष्मा:-
गुप्त उष्मा पदार्थ की वह उष्मा है जो किसी पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन लाती है।किसी पदार्थ की अवस्था मे परिवर्तन एक स्थिर तापमान पर ही संभव होता है एवं पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के समय तापमान स्थिर रहता है। अत:
‘’ स्थिर तापमान पर किसी पदार्थ की सिर्फ अवस्था में परिवर्तन लाने के लिये आवश्यक उष्मा की मात्रा को हम पदार्थ की गुप्त उष्मा कहते हैं।‘’
यदि किसी पदार्थ का द्रव्यमान M तथा गुप्त उष्मा L हो तो उस पदार्थ द्वारा एक निशिचत ताप पर पदार्थ की अवस्था परिवर्तन में ली गई उष्मा की मात्रा ,
Q = M L
पदार्थो की अवस्था में परिवर्तन मुख्यत: दो प्रकार से हो सकता है,
1.गलन की गुप्त उष्मा :–
स्थिर तापमान पर गलन की गुप्त उष्मा उष्मा की वह मात्रा है जो किसी पदार्थ को ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित करने के लिये आवश्यक हेाती है। आवश्यक उष्मा की यह मात्रा गलन की गुप्त उष्मा कहलाती है।
जैसे बर्फ से जल का बनना 0° C पर होता है तथा बर्फ के गलन की गुप्त उष्मा का मान 80 किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम हेाता है जिसका तात्पर्य है कि 1 किलोग्राम बर्फ केा जल मे परिवर्तित करने के लिये हमें 80 किलोकैलेारी उष्मा की आवश्यकता हेाती है।
अथवा 1 किलोग्राम जल केा जमाने (बर्फ) मे बदलने के लिये 0 ° C पर हमे जल से इतनी ही उष्मा (80 किलोकेलोरी ) निकालनी पडती है।
2. वाष्पन की गुप्त उष्मा :-
किसी पदार्थ का स्थिर ताप पर द्रवीय अवस्था से गैसीय अवस्था मे परिवर्तन के लिये जितनी उष्मा की आवश्यकता हेाती है उसे हम बाष्पन की गुप्त उष्मा कहते है उपरोक्त प्रकिया मे तापमान स्थिर रहता है।
पानी के बाष्पन के लिये अर्थात् पानी से भाप में परिवर्तन के लिये 539 किलो कैलोरी उष्मा की आवश्यकता हेाती है जो कि पानी के बाष्पन की गुप्त उष्मा कहलाती है।
चुकि वाष्पन की गुप्त उष्मा का मान बहुत अधिक होता है यही कारण है कि 100° C के पानी से जलने की अपेक्षा 100 ° C की भाप से जलने पर हमें तीव्र जलन होती है।
ऊष्मा का संचरण
उष्मा का संचरण :- उष्मा का किसी एक वस्तु से दूसरी वस्तु में जाने को अथवा किसी वस्तु में उष्मा के मान मे परिवर्तन अर्थात् उष्मा का किसी वस्तु में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने को हम उष्मा का संचरण या उष्मा का स्थानांतरण कहते हैं। उष्मा के संचरण का मान माध्यम के प्रकार तथा उनके अणुओं के मध्य होने वाली गतिज ऊर्जा पर निर्भर करती हैं।
उष्मा का स्थानांतरण मुख्यत: तीन प्रकार से होता है।
1.चालन
2. संवहन
3. विकरण
चालन
उष्मा के संचरण की इस विधि में उष्मा का स्थानान्तरण माध्यम के अणुओं के परस्पर संपर्क के कारण होता है । इसमें उष्मा माध्यम के एक अणु से निकलकर दूसरें अणु केा मिल जाती हैं। इसमें माध्यम के अणु अपने स्थान पर से विस्थापित नहीं होते बल्कि वे अपने ही जगह पर स्थिर रहकर उष्मा का संचरण करते हैं।
उष्मा का संचरण चालन विधि के द्वारा केवल ठोंसो में होता है। क्योंकि ठोसों के अणु आपस में पास-पास स्थित होतें है। जिससे अणुओं के मध्य उष्मा का संचरण चालन विधि के द्वारा आसानी से होने लगता हैं।
सभी धातुओं में उष्मा का स्थानान्तण चालन विधि के द्वारा होता है। चुंकि धातुयें उष्मा की सुचालक हेाती है। धातुओं की सुचालकता उनमें उपस्थित मुक्त इलैक्र्टोनों के कारण होती है। धातुओं के अन्दर उपस्थित इलैर्क्टान किसी से बद्ध न होकर धातु के भीतर गति करने के लियें स्वतंत्र रहतें है। और धातुओं में उष्मा का संचरण चालन विधि से कराने में सहायक होतें है।
उदाहरण– जब हम किसी धातु की छड को एक सिरे से पकडकर दूसरे को उष्मा देतें है तो कुछ समय के बाद दूर वाला सिरा भी गर्म होने लगता है तथा धातु की छड अपनी पूरी लम्बाई में गर्म होने लगती है।
ऐसा इसलिये होता है क्योंकि धातु की छड में उपस्थित मुक्त इलैर्क्टान उष्मा पाकर प्रभावी हो जाते है । ओर वे अपने परिवद्ध दुसरे इलैक्टा्रनो को उष्मा का स्थानान्तरण करने लगतें है ।और कुछ समय बाद छड अपनी पूरी लम्बाई में गर्म हो जाती है।
संवहन
संवहन:- उष्मा संचरण की इस विधि में उष्मा का संचरण कणों की स्वंय के स्थानान्तरण के फलस्वरूप होता है। जब हम किसी द्रव पदार्थ को उष्मा देते है तो उष्मा के कारण द्रव का तापमान परिवर्तन होने लगता है। तापमान में परिवर्तन होने से द्रवो का घनत्व में परिवर्तन होने लगता है। घनत्व में परिवर्तन होने पर द्रव के कम घनत्व वाले कण ऊपर उठने लगतें है तथा उनके स्थान पर अधिक घनत्व वाले कण आकर उनका स्थान ग्रहण कर लेते है यह प्रक्रिया तब तक निरंतर चलती रहती है
जब तक सम्पूर्ण द्रव का तापमान एक समान नहीं हो जाता है । इसमें कण अपना स्थान परिवर्तन करके उष्मा का संचरण करतें है। उष्मा संचरण की यह विधि संवहन कहलाती है।
संवहन विधि के द्वारा उष्मा का संचरण केवल द्रवों ओर गैसों में ही हो पाता है यह विधि ठोसों के लियें प्रभावी नहीं होती है।
उदाहरण:- वायूमंडल में बादलों का बनना संवहन क्रिया के द्वारा ही बनते है ।इसी प्रकार जब हम किसी बर्तन में पानी डालकर उसे गर्म करते है तो पानी के गर्म होने की क्रिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका संबहन की निभाता है। जिसके फलस्वरूप पानी गर्म होने लगता है।
द्रवों में उष्मा का संचरण चालन विधि से भी हो सकता है
विकरण
विकरण :- उष्मा संचरण की इस विधि में उष्मा का संचरण बहुत तीव्र गति से होता है । तथा उष्मा की इस विधि में माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।प्रत्येक बस्तु हर समय अपने स्वंय के तापमान के कारण सतत् रूप से उष्मा का उत्सर्जन करती रहती है। तथा इसके साथ-साथ अपने ऊपर आपतित होने वाली उष्मा को अवशोषित करती रहती है। इस प्रकार उत्सर्जित होने वाली उष्मा को विकरण उष्मा अथवा उष्मीय विकरण कहलाती है।
सूर्य से प्रथ्वी पर प्रकाश उष्मीय विकरण के रूप में ही पहुंचता है। उष्मीय विकरण विद्युत चुंबकीय तरंगो के रूप में प्रकाश की चाल से चलती है तथा उष्मीय विकरण के संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। जब उष्मीय विकरण ऊर्जा किसी पारदर्शी माध्मम में से गुजरता है तो माध्यम का तापमान अपरिवर्तित रहता है
जबकि यह विकरण किसी अपारदर्शी माध्यम में से गुजरने पर यह माध्यम के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तथा माध्मम का तापमान में व्रद्धि कर देता है । बस्तुऐं केवल उष्मा का उत्सर्जन ही नहीं करती बल्कि ये अपने पास उपस्थित अन्य वस्तुओ से उत्सर्जित उष्मा का अवशोषित भी करती है।
उदाहरण:- जब हम अपनी हाथो को आग के पास में रखते है तो हमें गर्मी का अहसास होता है जबकि हमारे हाथ आग से काफी दूर होते है ऐसा उष्मीय विकरण के द्वारा हमारे अपारदर्शी हाथों के संपर्क में आने के कारण होता है ओर हमें विकरण विधि के द्वारा उष्मा प्राप्त हेाती है।
आशा है उष्मा की परिभाषा,मात्रक इसका सूत्र ऊष्मा के प्रकार गुप्त ऊष्मा,विशिष्ट ऊष्मा, कैलोरी आपको समझ आ गयी होगी इसे शेयर जरूर करें नीचे बटन है और कोई और प्रश्न को तो comment में लिखें
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