प्रकाश अपवर्तन –
जब प्रकाश स्त्रोत से निकलने वाला प्रकाश किसी भी माध्यम में किसी सतह से टकराता है तो और कुछ भाग दूसरे माध्यम में चला जाता है। अर्थात् प्रकाश की कोई किरण किसी पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में जाती है तो पारदर्शी माध्यम को बदलते समय वह अपने रास्ते से विचलित या किसी अन्य दिशा में मुड़ जाती है। प्रकाश के इसी व्यवहार को हम प्रकाशका अपवर्तन कहते हैहै
जब प्रकाश की कोई किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम से गुजरती है तो वह किरण अभिलंब की ओर झुक जाती है, लेकिन वह किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम से होकर गुजरती है तो वह प्रकाश की किरण अभिलम्ब से दूर हट जाती है।
स्नेल का नियम –
एक ही वर्ण की प्रकाश किरण किन्ही दो माध्यमों के बीच की सीमा पर पड़ती है तो आपतन कोण की ज्या और अपवर्तन कोण की ज्या के बीच का अनुपातएक नियतांक होता है । एवं दुसरे वाले माध्यम का पहले वाले माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक कहते है तथा इसे ही स्नेल का नियम कहते है ।
sin i/sin r = नियतांक (μ) = स्नेल का नियम
इसका कोई मात्रक नहीं होता है । और यह हमेशा समतल तथा गोलीय पृष्ठ के द्वारा होने वाले अपवर्तन पर ही मान्य है ।
अपवर्तनांक का प्रकाश की चाल से संबंध –
एक आयताकार कॉंच के टूकड़े पर प्रकाश की किरण पड़ती है । तो वे किरणें काँच के अन्दर अभिलंब से थोड़ी झुकी हुई नजर आती है अर्थात् प्रकाश की किरण पहले माध्यम (वायु) से जब (काँच) दूसरे माध्यम में जाती है तो ये किरणें अभिलंब की तरफ थोड़ी झुकी हुई दिखाई देती है ।
ये किरणे दूसरे माध्यम में प्रकाश के बेग पर निर्भर करती है ।
(अपवर्तनांक )N = पहले माध्यम का प्रकाश वेग/ दूसरे माध्यम का प्रकाश वेग
N यहाँ एक नियतांक है जिसे हमें μ से भी प्रदर्शित कर सकते है!
अपवर्तनांक के प्रकार –
अपवर्तनांक दो प्रकार का होता है
1 नितपेक्ष अपवर्तनांक
2 सापेक्ष अपवर्तनांक
1 निरपेक्ष अपवर्तनांक –
जब प्रकाश किरण निर्वात था फिर वायु से किसी दूसरे माध्यम से गुजरती है तो वह निर्वात या वायु के सापेक्ष दूसरे माध्यम के अपवर्तनांक को ही निरपेक्ष अपवर्तनांक कहते है।जब कोई प्रकाश किरण किसी माध्यम से दुसरे माध्यम की सतह की ओर लम्बतत् आपतित होती है तो वह प्रकाश किरण अपने मार्ग से कभी विचलित नहीं होती है ।यदि किसी प्रकाश किरण का आपतन कोण शून्य हो तो अपवर्तन कोण भी शून्य होगा। यदि sin I = o हो तो sin r = o ही होगा ।
काँच के टूकड़े के द्वारा हमे वायु से काँच तथा काँच वायु में प्रकाश के अपवर्तन को आसानी से समझेगें।
इसके लिए हमें पहले एक काँच का आयताकार बड़ा टूकड़ा लेगें उस काँचके टूकड़े पर प्रकाशकी किरणे डालेगें तो प्रकाश किरण वायु से गुजरती हुई काँच के पृष्ठ पर पड़ती है । फिर वह किरण काँच के अन्दर चली जाती है । तो वह किरण काँच के अन्दर अभिलंब की और झुकी हुई दिखाई देती है । तथा यह झुकी हुई किरण काँच से बाहर वायु में आती है । तो यह किरण अभिलंबसे दूरी जाती हुई दिखाई देती है ।
माना आपतित किरण x काँच की सतह ‘o’ पर पड़ती है । जब यहाँ किरण काँचके अंदर अभिलंब pq की ओर झुकती हुई दिखाई देती है । उसके बाद किरण काँच के पृष्ठ बिन्दु ‘o’ से काँच के पृष्ठ बिन्दु ∠ तक पहुँचाती है तो यह किरण अभिलंब की ही ओर झुकी दिखती है । उसके बाद यह बाहर वायु में निकल जाती है । किरण y के रूप में जो अभिलंब rs से दूर हटती हुई दिखाई देती है । इसें ही काँच तथा काँच से वायुका अपवर्तन कहते है ।
यहाँ पर आपतित किरण x और अभिलंब pq के मध्य कोण,निर्गत किरण y और अभिलंब rs के मध्य बने कोण के बराबर होता है ।
∠xop= ∠y∠s
∠i=∠r1
2 सापेक्ष अपवर्तनांक –
जब प्रकाश किरण किसी एक पारदर्शी मध्यम से आकर अन्य पारदर्शी मध्यम से गुजरती है तो पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक सापेक्ष अपवर्तनांक कहलाता है
सापेक्ष अपवर्तनांक = पहले माधयम का प्रकाश वेग / दूसरे माधयम का प्रकाश वेग
विभिन्न माध्यमों के निरपेक्ष अपवर्तनांक –
वायु 1.0003
जल 1.33
वर्फ 1.31
केरोसिन 1.44
तारपीन का तेल 1.47
क्वार्टज् 1.46
क्राउन काँच 1.52
खनिज नमक 1.54
फ्लिंट काँच 1.65
रूबी (माणिक्य) 1.71 या 1.77
हीरा 2.42
एल्कोहल 1.36
बैंजीन 1.50
अपवर्तनांक को प्रभावित करने वाले कारक –
- अधिक घनत्व वाले किसी माध्यम का अपवर्तनांक भी अधिक होता है तथा जिस माध्यम का घनत्व कम होता तो उसका अपवर्तनांक भी कम होगा
- यदि किसी प्रकाश किरणों की तरंग दैर्य को बढाया जाये तेा उस किरण का अपवर्तनांक मान कम हो जाता है ।
- यदि ताप को बढ़ाने पर भी अपवर्तनांक का मान कम हो जाता है ।
- प्रकाश के अपवर्तन की क्रिया में प्रकाश की तीव्रता, चाल तथा तरंगदैर्ध्य बदलती है लेकिन आवृत्ति नहीं बदलती ।
अपवर्तनांक के कारण घटित होने वाली घटनाएं –
- तारों का टिमटिमाना भी अपवर्तन के कारण होता है ।
- पानी के भरे पात्र में जब हम कांचकी छड़ डालते है तो वह टेढ़ी दिखती है।
- तारों का अपनी वास्तविक स्थिति से अधिक उूंचा दिखाई देना तथा तालाब या किसी पानी के भरे पात्र की तली में सिक्के का अपनी वास्तविक स्थिति से उूपर दिखाई देना प्रकाश का अपवर्तन है । तथा तालाब व पानी से भरे पात्र को उूपर से देखने पर उसकी आभासी गहरायी कम प्रतीत होती है ।
- सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के बाद भी हमें सूर्य का दिखना प्रकाश का अपवर्तन कहलाता है ।
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