इस अर्टिकल मे हम रसायन विज्ञान कोलाइडी विलयन अध्याय के एक महत्वपूर्ण तो टॉपिक टिंडल प्रभाव के बारे में चर्चा करेंगे जो बोर्ड परीक्षाओं में कई बार पूछा जा चुका है
टिंडल प्रभाव की खोज 19वीं सदी में ब्रिटेन के भौतिक वैज्ञानिक जॉन टंडन ने की थी टिंडल ने अपने अनेक प्रयोगो व अध्ययन के बाद इस प्रभाव को लोगों के सामने प्रस्तुत किया चूंकि सबसे पहले टंडन ने इस प्रभाव को खोजा था इसलिए इस प्रभाव को टिंडल प्रभाव कहा जाता है
टिंडल प्रभाव –
जब किसी वास्तविक विलयन में से प्रकाश किरण को गुजारा जाता है तो उसमें से कोई प्रकाश का मार्ग दिखाई नहीं देता
परंतु जब प्रकाश किरण को किसी कोलाइडी विलियन से गुजारा जाता है तो प्रकाश की लंबवत दिशा में देखने पर विलयन मे से प्रकाश का मार्ग हमे चमकता हुआ दिखाई देता है
क्योकि कोलाइडी कणों के आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की तुलना में कम होता है इसलिए प्रकाश को परावर्तित नहीं हो पाता है और प्रकाश का अधिशोषण करता है और चमकने लगता है और एक कोण की आकृति बनता है जिसे टिंडल कोण कहते है
वास्तविक विलयन मे जब प्रकाश किरण गुजरती है तो वास्तविक विलियन के कणों का आकार बहुत छोटा होता है इस कारण प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं हो पाता इसलिए यह हमें दिखाई नहीं देता
उदाहरण
- जब हम किसी अंधेरे कमरे में प्रवेश करते हैं तो हम देखते हैं कि रोशनदान में से कुछ चमकदार किरणे आ रही होती हैं क्योंकि उस समय कमरे में उपस्थित धूल मिट्टी के कण कोलाइडी कणो का व्यवहार करते हैं
- सिनेमाघर में आने वाली चमकदार रोशनी टिंडल भी प्रभाव का ही उदाहरण है
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