जीवधारियों का वर्गीकरण ( Classification of living organisms )
वर्गिकी का पिता ( Father of taxonomy ) कैरोलस लीनियस को माना जाता है | इन्होंने जीवधारियों के वर्गीकरण की आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली प्रस्तुत की | इन्होंने अपनी पुस्तक सिस्टम ऑफ नेचर में जीवधारियों को दो जगतों में वर्गीकृत किया है |
1. पादप जगत 2. जन्तु जगत
अंततः हिटेकर ने जीवधारियों को पाँच जगतों में वर्गीकृत किया |
1. मोनेरा
ये प्रोकैरियोटिक कोशिका वाले जीव होते हैं , जिनमें केन्द्रक नहीं होता | जैसे – नीली-हरि शैवाल , जीवाणु |
2. प्रोटिस्टा
ये यूकैरियोटिक कोशिका वाले एककोशिकीय जीव होते हैं , जिनमें विकसित प्रकार का केन्द्रक पाया जाता हैं | जैसे – युग्लीना , प्लाज्मोडियम , अमीबा , पैरामीशियम |
3. प्लान्टी
ये प्रकाश संश्लेषण करने वाले बहुकोशिकीय पौधें होते हैं , जिनकी कोशिकाओं में रिक्तिका उपस्थित होती हैं | जैसे – सभी प्रकार की वनस्पतियाँ |
4. कवक
इन यूकैरियोटिक जीव में पर्णहरित ( Chlorophyll ) नहीं होने के कारण प्रकाश संश्लेषण नहीं होता हैं |
5. एनिमेलिया
ये यूकैरियोटिक एवं बहुकोशिकीय जन्तु होते हैं |
विषाणु ( Virus )
विषाणु किसी जीवित परपोषी के अंदर प्रजनन करने वाले अतिसुक्ष्म , अकोशिकीय , अविकल्प परजीवी तथा विशेष प्रकार के न्यूक्लिओ प्रोटीन के कण होते हैं | जो सजीव एवं निर्जीव के बीच की माने जाते हैं | क्योंकि विषाणु में आनुवंशिक पदार्थ ( RNA व DNA ) उपस्थित होता हैं तथा गुणन पाया जाता हैं , जो सजीवों के लक्षण प्रकट करते हैं तथा श्वसन , उत्सर्जन एवं जैविक क्रियाएं तथा जीवद्रव्य व कोशिकांगों की कमी के कारण ये निर्जीव के लक्षण प्रकट करते हैं | विषाणु के भी क्रिस्टल निर्जीवों के समान बनाए जा सकते हैं | विषाणु में केवल कोशिका के अंदर गुणन होता हैं |
विषाणु की संरचना
विषाणु कि खोज 1892 में Dmitry Ivanovsky ने तम्बाकू में की |
विषाणु प्रोटीन के आवरण से घिरी रचना होती हैं , जिसमें न्यूक्लिक अम्ल उपस्थित होता हैं | अनेक प्रोटीन इकाइयाँ ( Capsomeres ) वाइरस के बाहरी आवरण या कैप्सिड ( Capsid ) में उपस्थित होती हैं | इस पूरे कन को ‘ विरिऑन ‘ कहते हैं , जिनका आकार 10 – 500 मिलीमाइक्रॉन होता हैं | DNA या RNA में से कोई एक न्यूक्लिक अम्ल में पाया जाता हैं | पतली पूँछ के रूप में प्रोटीन कवच होता हैं |
विषाणु परपोषी प्रकृति के आधार पर तीन प्रकार के होते हैं |
1. पादप विषाणु
इनमें न्यूक्लिक अम्ल के रूप में RNA होता हैं | जैसे – टी. एम. वी. ( T.M.V. ) , पीला मोजैक विषाणु ( Y.M.V. ) आदि |
2. जन्तु विषाणु
इनमें न्यूक्लिक अम्ल के रूप में DNA तथा कभी – कभी RNA पाया जाता हैं , जो प्रायः गोल होते हैं | जैसे – इन्फ्लूएंजा, मम्पस वाइरस आदि |
3. बैक्टीरियोफेज या जीवाणुभोजी
इनमें DNA होता हैं तथा ये केवल जीवाणुओं के ऊपर आश्रित होते हैं |
विषाणु जनित रोग
पौधों के रोग –
1. भिण्डी – पीली नाड़ी मोजेक
2. गन्ना – तृण समान प्ररोह
3. तिल – फिल्लोडी
वाइरॉयड
डियनर एवं रेयमर ने संक्रमित कारक वाइरॉयड की खोज की | वाइरॉइयड्स प्रोटीन के आवरण रहित तथा मात्र RNA के खण्ड होते हैं |
प्रिआन
स्टैनले प्रूसीनर ने प्रिआन की खोज की | प्रिआन वे रोग संक्रामक कारक होते हैं , जिनमें न्यूक्लिक अम्ल नहीं होता हैं तथा केवल प्रोटीन होता हैं | प्रिआन में संक्रमित करने की क्षमता एवं गुणन की क्षमता होती हैं | भेड़ों में स्क्रेपी रोग प्रिआन के कारण होता हैं | प्रिआन प्रोटोन की त्रिविमीय संरचना जोकि मानव को संक्रमित करती हैं , जिस कि खोज स्विस ने की |
जीव विज्ञान से संबंधित शाखाएँ
1. जैव रसायन ( Bio chemistry )
इसके अंतर्गत जीवधारियों में रासायनिक प्रक्रियाओं एवं रासायनिक घटकों का अध्ययन किया जाता हैं |
2. जैव सांख्यिकी ( Bio Metrics )
गणितीय विश्लेषण |
3. जीव भौतिकी ( Bio Physics )
जैविक क्रियाओं का अध्ययन भौतिक सिद्धान्तों एवं विविधता के आधार पर किया जाता हैं |
4. आण्विक जीवविज्ञान ( Molecular Biology )
रसायनिक स्तर पर अध्ययन |
5. सूक्ष्म जैविकी ( Microbiology )
सूक्ष्म जीवों का अध्ययन |
6. आनुवंशिक अभियांत्रिकी ( Genetic Engineering )
आनुवंशिकता के आधार पर नए आनुवंशिक लक्षणों वाले जीवधारियों के निर्माण का अध्ययन |
7. कार्यिकी ( physiology )
जीवों में संचारित विभिन्न जैविक क्रियाओं का अध्ययन |
8. बायोनिक्स ( Bionics )
जीवों में होने वाले कार्य , गुण एवं पद्धति का अध्ययन |
9. बायोनोमिक्स ( Bionomics )
जीवधारियों एवं वातावरण के साथ अध्ययन |
10. बायोनोमी ( Bionomy )
जीवन के नियमों का अध्ययन |
11. इथोलॉजी ( Ethology )
मानव एवं सभी जंतुओं के व्यवहार का अध्ययन |
12. जेरोन्टोलॉजी ( Gerontology )
वृद्ध होने की प्रकिया का अध्ययन
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