तापायनिक उत्सर्जन एवं विकिरण की द्वैती प्रकृति क्या है
आज के इस टॉपिक में हम तापायनिक उत्सर्जन के बारे में समझेंगे जिसमे हम देखेंगे की तापायनिक उत्सर्जन क्या होता है और इसमें किस प्रकार की प्रक्रिया होती है और इसके बाद हम प्रकाश की द्वैती प्रकृति क्या है इस बारे में भी समझेंगे जिसमे हम प्रकाश की विभिन्न अवधारणाओं के बारे में बात करेंगे लेकिन उससे पहले हमें यह पता होना चाहिए की तापायनिक उत्सर्जन का उपयोग किसलिए होता है क्योंकि तापायनिक उत्सर्जन एक इलेक्ट्रान उत्सर्जन की विधि है तो सबसे पहले हम इलेक्ट्रान उत्सर्जन को समझ लेते है इसके बाद एक – एक करके बाकि बातो को समझेंगे |
इलेक्ट्रान उत्सर्जन
इलेक्ट्रान उत्सर्जन एक ऐसी क्रिया है जिसमे किसी धातु की सतह से इलेक्ट्रान उत्सर्जित होते है ये इलेक्ट्रान मुक्त इलेक्ट्रान कहलाते है तथा ये मुक्त इलेक्ट्रान धातु के अन्दर Random Motion करते है तथा यही मुक्त इलेक्ट्रान किसी भी धातु की चालकता के लिए उत्तरदायी होते है परन्तु ये मुक्त इलेक्ट्रान इस धातु की सतह से बाहर नहीं निकल पाते है |
पर जब इस धातु को किसी External Source के द्वारा एनर्जी दी जाती है तो ये इलेक्ट्रान इस एनर्जी को ग्रहण करते है जिससे इनकी Kinetic Energy ( गतिज उर्जा ) बड जाती है और ये इलेक्ट्रान इस धातु की सतह से उत्सर्जित हो जाते है इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रान उत्सर्जन कहा जाता है जिसमे किसी धातु की सतह से इलेक्ट्रान उत्सर्जित होते है |
अब हम समझते है उस उर्जा के बारे में जिससे अधिक उर्जा होने पर ही इलेक्ट्रान धातु की सतह से मुक्त होते है इसे धातु का कार्यफलन कहा जाता है अर्थात किसी धातु का कार्यफलन उसकी वह न्यूनतम उर्जा होती है जिससे अधिक उर्जा होते ही उस धातु की सतह से इलेक्ट्रान उत्सर्जित होने लगते है इसे ( ɸ0 ) से दर्शाया जाता है |
इलेक्ट्रान उत्सर्जन की इस प्रक्रिया के लिए अलग – अलग विधियों का प्रयोग किया जाता है जिसमे अलग – अलग प्रक्रिया के द्वारा इलेक्ट्रान को एनर्जी दी जाती है तथा इनकी गतिज उर्जा में वृद्धि की जाती है और उनकी उर्जा के मान को कार्यफलन उर्जा के मान से अधिक किया जाता है ये अलग –अलग विधिया जो की निम्न प्रकार से हो सकती है –
1 . तापायनिक उत्सर्जन
2 . क्षेत्र उत्सर्जन
3 . प्रकाश विद्युत उत्सर्जन
लेकिन इस टॉपिक में हम सिर्फ तापायनिक उत्सर्जन के बारे में ही बात करेंगे तो समझते की तापायनिक उत्सर्जन क्या होता है और इसमें किस प्रकार की प्रक्रिया होती है |
तापायनिक उत्सर्जन
तापायनिक उत्सर्जन इलेक्ट्रान उत्सर्जन की वह विधि है जिसमे तापीय उर्जा के द्वारा किसी धातु की सतह से इलेक्ट्रान का उत्सर्जन होता है यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमे धातु को पर्याप्त मात्रा में गर्म किया जाता है अर्थात Heat एनर्जी दी जाती है और इस एनर्जी को जब धातु को दिया जाता है तो धातु की सतह पर उपस्थित इलेक्ट्रान इस एनर्जी को ग्रहण करते है और इस प्रकार उनकी उर्जा में वृद्धि हो जाती है और जब इस उर्जा का मान उस धातु के कार्य फलन से अधिक हो जाता है तो इस धातु से इलेक्ट्रान उत्सर्जित होने लगते है |
और ये उत्सर्जित इलेक्ट्रान धातु की सतह के आसपास के Surrounding में एकत्रित हो जाते है जितनी ज्यादा Heat एनर्जी को सप्लाई किया जाता है उतनी ही ज्यादा मात्रा में इलेक्ट्रान धातु की सतह से उत्सर्जित होते है और इस प्रकार उर्जा बडाने से तापायनिक उत्सर्जन की दर भी बड जाती है इस पूरी प्रक्रिया को तापायनिक उत्सर्जन कहा जाता है | अब हम समझेंगे की तापायनिक उत्सर्जन की दर किन – किन बातों पर निर्भर करती है जिनकी वजह से तापायनिक उत्सर्जन की दर परिवर्तित होती है |
तापायनिक उत्सर्जन की दर की निर्भरता
तापायनिक उत्सर्जन की दर निम्न बातों पर निर्भर करती है –
तापमान पर निर्भरता
किसी भी धातु की सतह का तापमान जितना अधिक होगा उस धातु की सतह से इलेक्ट्रान उत्सर्जन भी अधिक मात्रा में होंगे अर्थात तापमान बड़ाने से तापायनिक उत्सर्जन की दर बढती है |
धातु के क्षेत्रफल पर निर्भरता
किसी भी धातु का क्षेत्रफल जितना अधिक होगा उससे तापायनिक उत्सर्जन भी अधिक होगा और अधिक मात्रा में इलेक्ट्रान का उत्सर्जन होगा | और इस प्रकार तापायनिक उत्सर्जन की दर धातु के क्षेत्रफल के समानुपाती होगी |
धातु की प्रकृति पर निर्भरता
अलग – अलग धातु के लिए तापायनिक उत्सर्जन की दर अलग – अलग होती है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रत्येक धातु के लिए धातु का कार्यफालन का मान अलग – अलग होता है और जब तक उस धातु के लिए दी गई उर्जा का मान उसके कार्यफालन से अधिक नहीं हो जाता उससे इलेक्ट्रान उत्सर्जन नहीं होता है इसलिए तापायनिक उत्सर्जन धातु की प्रकृति पर निर्भर करता है |
अब हम प्रकाश ( विकिरण ) की द्वैती प्रकृति क्या है इसको समझते है
प्रकाश ( विकिरण ) की द्वैती प्रकृति
प्रकाश ( विकिरण ) की द्वैती प्रकृति की दो अवधारणाऐ है जो की इस प्रकार है की –
1 . पहली यह की प्रकाश छोटे – छोटे उर्जा के पैकेट के रूप में होता है जिन्हें फोटोन कहा जाता है या फिर इन्हें क्वांटा कहा जाता है और ये फोटोन दर्शाते है की किस प्रकार यह प्रकाश एक सीधी रेखा में गति करता है |
2 . दूसरी अवधारणा यह है की प्रकाश एक तरंग के रूप में होता है और तरंग के रूप में ही आगे बड़ता है | जिससे यह किसी भी Object के Around Bend हो सकता है |
इस प्रकार प्रकाश की दोनों अवधारणाऐ है जिनकी पुष्टि अल्बर्ट आइन्सटाइन के द्वारा की गई थी जिसमे उन्होंने पराबैंगनी किरणों का प्रयोग किया था और इन किरणों को धातु की सतह पर गिराकर इस धातु की सतह से होने वाले उत्सर्जित इलेक्ट्रान का अध्ययन किया और अपने इस प्रयोग के आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला की –
प्रकाश की द्वैती प्रकृति होती है तरंग प्रकृति तथा कणीय प्रकृति और इस प्रकार विभिन्न प्रयोगों के आधार पर प्रकाश की द्वैती प्रकृति की अवधारणाओं को सिद्ध किया गया |
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