शेपर मशीन एक reciprocating प्रकार की मशीन है जो horizontal, vertical और फ्लेट सतह को मशीनिंग करने के लिये उप्योग की जाती हैं । एसे प्रकार के मशीन मे वर्कपीस को टेबल पर फिक्स रखा जाता हैं और cutting tool के मोशन कि मदद से जोब के सतह से material को निकाला जाता हैं ।
फॉरवर्ड स्ट्रोक के दौरान, रेम टुल को पकड़े हुए है, फॉरवर्ड डायरेक्शन मे आगे बढता है और वर्कपीस को काटता हुवा जाता हैं ताकि ऊसे मशीनिंग करके उसके ज़रुरी शेप में ला सके। जब रेम वापस ऊसकि पहले वाली जगह पर आता हैं जिसको रिटर्न स्ट्रोक कहा जाता हैं तब वर्कपीस कि सतह से कोई भी मटेरियल नही निकलता हैं ।
यह वाले स्ट्रोक कि गति फॉरवर्ड स्ट्रोक कि गति से ज़्यादा होती हैं ताकि वक्त को कम कर सके जिसके कारण cycle टाईम एक वर्कपीस को बनाने में कम लगे । यह variable गति हम quick return mechanism से प्राप्त होती हैं ।
1. शेपर मशीन का इतिहास:
शेपर मशीन को १७९१ और १७९३ के बिच मे बनाया गया था । सैमुअल बेंथम नाम के वैज्ञानिक ने इसका आविष्कार किया था, मगर रोई ने जेम्स नैस्मिथ को शेपर मशीन का आविष्कार सुचित किया ।
2. शेपर मशीन के पार्ट्स :
- बेस
- कोलम
- सेडल
- टेबल
- रेम
- बेस:
यह एसा डिज़ाइन किया गया है कि मशीन के पूरे भार और इसके द्वारा स्थापित बलों को ले सकता है | इस पर मशीन के सारे पार्ट्स लगे होते हैं । यह कास्टिंग प्रोसेस से बना हुआ होता हैं ।
- कोलम:
यह कास्टिंग प्रोसेस से बना होता है, जो एक बॉक्स जैसा होता है और बेस पर लगा होता है । दो सटीक मशीनी गाइडवे कॉलम के उपर दिए गए हैं, जिस पर रेम का मोशन होता हैं । इस्के रोले एक protection कि तरह भी होता हैं ताकि अंदर के moving parts कि जगह बनी रहे ।
- सेडल:
यह कोलम पर लगा होता हैं ताकि टेबल का movement horizontal direction में भी हो सके ।
- टेबल:
टेबल को सैडल पर बोल्ट किया गया है और सैडल से क्रॉसवाइज और वर्टिकल मूवमेंट प्राप्त करता है । टी-बोल्ट का उपयोग ऊपर और किनारों पर क्लैंपिंग के लिए किया जाता है। टेबल को किसी भी एंगल पर घुमाया जा सकता है।
- रेम:
रेम कॉलम गाइडवे पर reciprocating motion में आगे और पिछे कि तरफ जाता हैं और टूल हेड को सिंगल-पॉइंट के साथ ले जाता है। टूल हेड क्लैपर बॉक्स में होता है, जो केवल आगे के स्ट्रोक में काटने की क्रिया करता हैं रेम के रिवर्स स्ट्रोक में टूल कोइ भी कटिंग नही करता और जल्द से अपनि पोसितिओन पर आता हैं ताकि अग्ला स्ट्रोक perform कर सके ।
3. शेपर मशीन के प्रकार:
- ड्राइविंग mechanism के प्रकार के आधार पर।
- क्रैंक टाइप शेपर।
- गियर वाला टाइप शेपर।
- हाइड्रोलिक टाइप शेपर
- रेम यात्रा पर आधारित ।
- Horizontal शेपर
- Vertical शेपर।
- टेबल डिजाइन के आधार पर।
- मानक शेपर।
- यूनिवर्सल शेपर ।
- स्ट्रोक काटने के आधार पर।
- पुश कट प्रकार
- ड्रो कट टाइप
4. वर्किंग प्रिन्सिपल ओफ शेपर मशीन:
जैसा कि हमने उपर इंट्रोडकशन मे देख शेपर मशीन एक reciprocating मोशन करने वाली manufacturing मशीन हैं । यह single point cutting tool कि मदद से वर्कपीस की सतह से मटेरियल को निकालता हैं । इस type कि मशीन मे वर्कपीस को टेबल पर फिक्स रखा जाता हैं , इस्कि position सेडल के सहारे horizontal direction में बदल सकते हैं, और lead screw के सहारे vertical direction में टेबल को मूवमेंट दिया जाता हैं ।
रेम को कोलम पर लगे गाइडवे में सटीक सीधी लाइन में मुव किया जाता हैं और सीधा जाते समय वर्कपीस कि सतह को काट ता हुआ जाता हैं, ये सीधे मोशन को फोर्वड स्ट्रोक कहा जाता हैं । जब फोर्वड स्ट्रोक पुरा होता हैं तब रेम वपस अपनी जगह पर आता हैं जिसे हम रिटर्न स्ट्रोक कहते हैं, तभी कोइ भी cutting नही होती हैं इसका मतलब यह हैं कि मशीन के द्वारा कोई भी वर्क नही होता हैं (therefore work done by machine during the stroke is zero) । अब यह स्ट्रोक को पुरी तरह से हटा नही जा सकता हैं, मगर लगने वाले समय को कम किया जा सकता हैं ।
अब इस समस्या को हल करने के लिये एक mechanism का उपयोग किया जाता हैं जिस का नाम “Quick return mechanism” रखा गया हैं । इसके नाम से ही हम इसके वर्किंग प्रिंसिपल का अंदाजा लगा सकते हैं। फोर्वड स्ट्रोक को कटिंग (cutting) स्ट्रोक भी कहा जाता हैं, और रिटर्न स्ट्रोक को नोन-कटिंग स्ट्रोक या नोन-वर्किंग सट्रोक (non-cutting or non-working stroke) भी कहा जाता हैं ।
5. शेपर मशीन के उप्योग:
- सीधी और सपाट सतहें उत्पन्न करने के लिए ।
- खुरदरी सतहों को चिकना करने के लिए ।
- आंतरिक splines बनाने के लिए ।
- गियर दांत बनाने के लिए ।
- Dovetail स्लाइड बनाने के लिए ।
- पुली या गियर में कीवे बनाने के लिए ।
6. शेपर मशीन के फायदे (advantage of shaper machine):
- कम टूलींग लागत |
- प्रयोग करने में आसान |
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