पादपों में संरचनात्मक संगठन
पादप शरीर क्रिया विज्ञान के अंतर्गत पौधों की विभिन्न जैविक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता हैं | भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तनों के बीच सभी प्रकार के आदान – प्रदान को जैविक क्रियाएँ कहते हैं | उपचयी ( Anabolic ) प्रकाश संश्लेषण की जैविक क्रिया हैं |
1. जड़ ( Root )
- प्राथमिक जड़
प्राथमिक जड़ मिट्टी में उगती हैं , जो द्विबीज पत्री पादपों में मूलांकुर के लम्बे होने से बनती हैं |
- द्वितीयक व तृतीयक जड़
इनमें पार्श्वीय जड़ होती हैं |
मूसला जड़ तंत्र
मूसला जड़ तंत्र प्राथमिक जड़ तथा उसकी शाखाओं से मिलकर बनती हैं |
उदाहरण – सरसों का पौधा |
झकड़ा जड़तंत्र
झकड़ा जड़तंत्र जड़ के आधार से निकलती हैं |
उदाहरण – गेंहू का पौधा |
अपस्थानिक पौधा
अपस्थानिक जड़ मूलांकुर की बजाए पौधे के अन्य भाग से निकलती हैं |
उदाहरण – घास , बरगद |
जड़ का रूपांतरण
- वे जड़ जो भोजन को संग्रहित करने पर फूल जाती हैं |मूसला जड़ – गाजर और शलजम की , अपस्थानिक जड़ – शकरकंद की |
- अवस्त्म्भ जड़ – अवस्त्म्भ जड़ तने के निचली गांठो से निकलती हैं , जो मक्का तथा तने को सहारा देती हैं |
- श्वसन जड़ – श्वसन जड़ श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती हैं |
2. तना ( Stem )
व्रक्ष के ऊपरी भाग को तना कहते हैं | शाखाएँ , पत्तीयाँ , फूल तथा फल व्रक्ष के तने पर स्थित होते हैं | अंकुरित बीज के भ्रूण के प्रांकुर से तना विकसित होता हैं | तने में जहां से पत्तियाँ निकलती हैं , use गाँठ कहते हैं | तने का रंग प्रायः हरा होता हैं | और बाद में वह काष्ठीय तथा गहरा भूरा दिखाई देता हैं |
तने के कार्य
- तने का कार्य पत्ती , फूल तथा फल को संभाले रखना तथा शाखाओं को फैलाना हैं |
- तना पानी , खनिज लवण और प्रकाश संश्लेषी पदार्थों का संवहन करने में मद्त करता हैं |
- तना भोजन संग्रह करने , कायिक प्रवर्धन करने में सहायता प्रदान करते हैं |
- जब परिस्थितियाँ अनुकूल ना हो तब तना व्रद्धि के लिए चिर कालिक अंग का कार्य करते हैं |
तने का रूपान्त्रण
तना विभिन्न कार्यो को सम्पन्न करने के लिए खुद को रूपांतरित कर लेता हैं |
- भूमिगत तने भोजन संचय करने के लिए रूपांतरित हो जाते हैं , जैसे – आलू , अदरक, हल्दी, जमीकन्द और अरबी के तने |
- पशुओं से पौधे को बचाने के लिए बहुत से पौधों में काँटे होते हैं , जैसे – सिट्रस , बोगेनविया |
- तने के प्रतान पतले और कुंडलित होते हैं , जो कक्षीय कली से निकलते हैं |
3. पत्ती ( Leaf )
पत्तियों की संरचना सामान्यतः पाश्र्वीय तथा चपटी होती हैं | पत्ती तने पर लगी होती हैं | पत्ती के कक्ष में कली होती हैं |
शाखा में विकसित हो जाती हैं , उसे कक्षीय कली कहते हैं |
प्ररोह के शीर्षस्थ विभज्योतक ( Meristeme ) भाग से पत्तियाँ निकलती हैं | पत्तियाँ पौधों की कायिक अंग हैं , जो भोजन का निर्माण करती हैं |
प्ररूपी पत्ती के भाग
पर्णाधार
पर्णाधार की सहायता से पत्तियाँ तने से जुड़ी होती हैं |
पर्णवृन्ततल्प ( पल्वाइनस )
एक बीजपत्री में पर्णाधार , फ़ैल जाता हैं , जिससे तने को आंशिक व पूर्ण ढक लेता हैं , पर्णाधार कुछ लेग्यूमी तथा कुछ अन्य पौधों में फूल जाता हैं | जिसे पर्णवृन्ततल्प कहते हैं |
पर्णवृन्त
पर्णवृन्त पत्ती की सजावट इस तरह से करता हैं , इसे अधिकतम सूर्य की प्राप्ती हो सके | ताजी हवा पत्ती को मिल सके | इसके लिए पर्णवृन्त स्तरिका को हिलाता हैं | स्तरिका पत्ती का फैला हुआ भाग होती हैं | स्तरिका के बीच में एक स्पष्ट शिरा होती हैं , जिसे मध्य शिरा कहते हैं |
पत्ती के प्रकार
- सरल पत्ती
- संयुक्त पत्ती
पर्णविन्यास
पर्णविन्यास में तने व शाखा पर पत्ती विन्यस्त क्रम में रहती हैं |
पर्णविन्यास तीन प्रकार का होता हैं |
- एकांतर
- सम्मुख
- चक्करदार
पत्ती का रूपांतरण
- भोजन बनाने के अतिरिक्त पत्ती को अन्य कार्यों के लिए रूपांतरित होना पड़ता हैं |प्रतान में जैसे – मटर ऊपर चढ़ने के लिए , शूल ( कांटों ) रक्षा के लिए जैसे – कैक्टस में परिवर्तित हो जाते हैं |
- भोजन का संचय प्याज तथा लहसुन की गूदेदार पत्तियों में होता हैं |
- कुछ पौधों में पत्तियाँ छोटी तथा अल्पआयु होती हैं जैसे – ऑस्ट्रेलियन अकेसिया , इनका पर्णवृन्त फैल कर हरा हो जाता हैं और भोजन बनाने का कार्य करता |
- पत्ती घड़े के आकार में रूपांतरित हो जाती हैं | कुछ कीटाहारी पादपों में जैसे – घटपर्णी , वीनस फ्लाई ट्रेप |
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